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युद्ध और अहिंसा


है! चाहे मैं कार्य-समिति के विनम्र मार्गदर्शक का काम करूँ, या, अगर इसी बात को बिना किसी आपत्ती के मैं कह सकूँ तो कहूँगा कि, सरकार के मार्ग-दर्शक का-मेरा मार्ग-प्रदर्शन उनमें से एक को या दोनों को अहिंसा के मार्ग पर ले जाना होगा, चाहे वह प्रगति सदा अगोचर ही क्यों न रहे। यह स्पष्ट है कि मैं किसी रास्ते पर किसी को जबर्दस्ती नहीं चला सकता। मैं तो सिर्फ उसी शक्ति का उपयोग कर सकता हूँ, जो इस अवसर के लिए ईश्वर मेरे हृदय व मस्तिष्क में देने की कृपा करें।

(२) मैं समझता हूँ कि इस प्रश्न का जवाब पहले प्रश्न के जवाब में आ गया है।

(३) अहिंसा की भाँति हिंसा के भी दर्जे होते हैं। कार्यसमिति इच्छापूर्वक अहिंसा की नीति से नहीं हटी है। सच तो यह है कि वह ईमानदारी के साथ अहिंसा के वास्तविक फलितार्थों को स्वीकार नहीं कर सकती। उसे लगा कि बहुसंख्यक कांग्रेसजनों ने इस बात को स्पष्ट रूप से कभी भी नहीं समभा कि बाहर से आक्रमण होने पर वे अहिंसात्मक साधनों से देश की रक्षा करेंगे। सच्चे अर्थों में तो उन्होंने सिर्फ यही समझा है कि ब्रिटिश सरकार के खिलाफ़ कुल मिलाकर अहिंसा के जरिये वे सफल लड़ाई लड़ सकते हैं। अन्य क्षेत्रों में कांग्रेसजनों को अहिंसा के उपयोग की ऐसी शिक्षा मिली भी नहीं है। उदाहरण के लिए, साम्प्रदायिक दंगों या गुण्डेपन का अहिंसात्मक रूप से सफल मुक्राबिला करने का निश्चित तरीक़ा उन्होंने अभी नहीं