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२१५ युद्ध और अहिंसा

गतं उपयोग करना नहीं छोड़ा और न मेरी यह अपेक्षा है कि जनता इनका उपयोग करना छोड़ दे । मैं यह भी नहीं मानता कि स्वराज्य में इन वस्तुओं का उपयोग बन्द कर दिया जायगा । तथापि मैं इतनी आशा अवश्य रखता हूँ कि स्वराज्य में जनता यह मानना छोड़ दे कि इन साधनों में हमारी नैतिक उन्नति को आगे बढ़ानेवाला कोई विशेष गुण है अथवा यह कि वे हमारी ऐतिहासिक उन्नति के लिए भी अनिवार्य हैं । इन साधनों की आवश्यकता की पूर्ति जितना ही उपयोग किया जाय और हिन्दुस्तान के ७५ हजार गाँवों को रेल-तार के जाल से पाट देने की अभिलाषा न रखी जाये यह मैं जनता को अवश्य सलाह ढूँगा । जब स्वतन्त्रता की स्फूर्ति-द्वारा जनता तेजस्वी बन जायगी, उस समय उसे ज्ञात होगा कि ये साधन हमारी प्रगति की अपेक्षा हमारी गुलामी के लिए अधिक सहायक होने के कारण हमारे राज्यकर्ताओं के लिए जरूरी थे । प्रगति तो लँगड़ी स्री जैमी है । यह लँगड़ाती-लँगड़ाती कुदकती-कुदकती ही आती है, तार या रेल से उसको नहीं भेजा जा सकता ।

‘नवजीवन': २० नवम्बर, १ ६ २ १