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विरोधाभास २११ के पक्ष में लड़ने के लिए रंगरूट भर्ती करने का आयोजन किया था । जर्मनी और आस्ट्रिया की प्रजा ने तो भारतीयों का कुछ भी नहीं बिगाड़ा था । जब दो राष्ट्रों में युद्ध प्रारम्भ हो, तब उनमे से किसी एक का पक्ष लेने का निर्णय करने के पहले मनुष्य को दोनों पक्षों की बात सुन लेनी चाहिए । गत महायुद्ध के समय तो हमारे सामने एक ही पक्ष का राग आलापा जाता था, ओर खुद उस राग को आलापनेवाली प्रजा भी उसकी प्रामाणिकता अथवा सचाई के विषय में कुछ असंदिग्ध न थी । सत्याग्रह और अहिंसा के शाश्वत हिमायती होकर भी आपने उन लोगों को, जो युद्ध के धार्मिक अथवा अधार्मिक होने के बारे में अँधेरे में थे, क्यों साम्राज्य तृष्णा के कीचड़ में हाथ-पॉव पीटनेवाली प्रजा की भूख शान्त करने के लिए लड़ने का प्रलोभन दिया ? आप कहेंगे कि उस समय आपको ब्रिटिश नौकरशाही में अद्धा थी । जिस विदेशी प्रजा का एक-एक कृत्य उसके दिये हुए वचनों के सरासर विपरीत सिद्ध हुआ है, क्या उसमें अद्धा रखना किसी भी मनुष्य के लिए सम्भव हो सकता है ? फिर आप जैसे बुद्धिमान प्रतिभाशाली पुरुष के लिए ऐसा कैसे सम्भव हो सकता है? इस दूसरी गुत्थी का भी मुझे आपके पास से उत्तर चाहिए । “एक तीसरी बात और मुझे कहनी है । आप अहिंसावादी हैं । और आज की स्थिति में तो भले ही हमारे लिए कट्टर अहिंसावादी रहना उचित हो सकता है, किन्तु, जिस समय भारतवर्ष स्वतन्त्र होगा और यदि उस समय किसी विदेशी राष्ट्र ने हम