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अहिंसक की विडंबना २०९ इतनी ही स्वतंत्रता के लिए वह नुकसानदेह साबित न होंगे । और जो व्यक्तिगत और राष्ट्रीय स्वतंत्रता के बारे में है वही अन्तर्राष्ट्रीय स्वतन्त्रता के बारे में भी है। कानून का एक सूत्र है कि अपनी स्वतंत्रता का इस प्रकार उपभोग करो कि जिससे दूसरे की स्वतंत्रता को नुकसान न पहुँचे। यह सूत्र नीति के सूत्र-जैसा ही है । ‘यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे’ यह नियम भी शाश्वत है । पिंड के लिए तो एक नियम है और ब्रह्माण्ड के लिए दूसरा, ऐसी बात नहीं है। नवजीवन : २ फरवरी, १९३०