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२०८ युद्ध और अहिंसा बोअर युद्ध में और जुलु बलवे के समय ब्रिटेन के साथ रहकर जो मैंने हिंसा का स्पष्ट अङ्गीकार किया था वह भी सिर पर आ पड़ी हुई अनिवार्य स्थिति में अहिंसा के लिए ही किया था । परन्तु यह भी संभव है कि वह अङ्गीकार या सहयोग अपनी कमजोरी के कारण अथवा अहिंसा के विश्वधर्मस्व के अपने अज्ञान के कारण मैंने किया हो । हालाँकि मेरी आत्मा ऐसा नहीं कहती कि उस समय या आज भी किसी कमजोरी या अज्ञान के वश होकर मैंने ऐसा किया था । अगर हिंसा के ऊपर आधार रखनेवाले किसी तंत्र के आधीन अनिच्छापूर्वक होना पड़े तो उसमें परोक्ष भाग लेने के बदले प्रत्यक्ष भाग लेना ही अहिंसावादी पसन्द करेगा । अमुक अंश में हिंसा पर आधार रखनेवाले जगत में मैं रहा हूँः अगर मेरे पड़ोसियों का संहार करने के लिए जो सेना रखी जाती है उसके लिए कर देने या सेना में भरती होने इन दो बातों में से अगर मुझे एक चुनना हो तो हिंसा की ताकत पर अंकुश प्राप्त करने के लिए और अपने साथियों का हृदय-परिवर्तन करने की आशा में मैं सेना में भरती होना ज्यादा पसन्द करूँगा, बल्कि ऐसा किये बिना मेरी कोई गति नहीं । और ऐसा करते हुए मैं नहीं मानता कि मेरे अहिंसा-धर्म में कोई बाधा आती है । राष्ट्रीय स्वतंत्रता कोई आकाश-कुसुम नहीं है, व्यक्तिगत स्वतंत्रता जितनी ही वह भी आवश्यक है । पर अगर दोनों अहिंसा पर अवलम्बित हों तो दूसरे राष्ट्र अथवा दूसरे व्यक्ति की