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१६४ युद्ध और अहिंसा सम्बन्धी उसकी उपयोगिता भी दिन-पर-दिन घटती जाती है और आगामी दशकों में यही बात अधिकाधिक होती जायगी । पिछले ४० वर्षों में, यानी इस पत्र के पाठकों के जीवन में ही, संयुक्तराज्य की नौसेना का सालाना खर्च डेढ़ करोड़ डालर से बढ़कर ३ १ करोड़ ८ लाख डालर हो गया है । दूसरे शब्दों में यों कह सकते हैं कि संयुक्त राज्य अपनी फौज और नौसेना पर चौबीस घण्टों में २० लाख डालर स्वाहा करता रहा है । ‘युद्ध, मनुष्य का सबसे बड़ा उद्योग' शीर्षक एक अग्रलेख में ‘न्यूयार्क टाइम्स' के मार्च १९२८ वाले श्रङ्क में उसके लेखक ने भली भाँति सिद्ध कर दिखाया था कि इस जमाने में फौजी लढ़ाई की तैयारी ही संसार का बड़े से बड़ा उद्योग हो गया है। मगर इसकी वजह से संसार को कितनी ज्यादा कुर्बानी करनी पड़ती है, उसका अन्दाजा अकेले डालरों के हिसाब से ही नहीं लगाया जा सकता; क्योंकि युद्ध के शस्त्र तैयार करने में रुपया तो खर्च होता ही है, मगर इसके सिवा भी, उनकी साल-सँभाल करने और फौजी सामान बनाने के लिए लोगों की एक बड़ी संख्या की जरूरत रहती है । इस तरह देशों की समस्त जनता और उनकी तमाम अौद्योगिक शक्ति युद्ध की तैयारी में नष्ट होती जाती है । भूतकाल में वेतन-जीवी सिपाहियों की फौजें ही युद्ध के मैदानों में भिड़ती थीं । इसलिए उन दिनों आज की अपेक्षा लोगों के एक बहुत थोड़े हिस्से को युद्ध में हाथ बैंटाना पढ़ता था । मगर वर्तमान युद्धविशारद राष्ट्र की सारी जनता को युद्ध के लिए