युद्ध और अहिंसा १९६ विरुद्ध हूँ, जितना कि लड़ाई के; किन्तु मैं निरन्तर ऐसे जीवों के प्राण इस आशा में लिये चला जाता हूँ कि किसी दिन मुझ में यह योग्यता आजायगी कि मुझे यह हत्या न करनी पड़े । यह सब होते रहने पर भी अहिंसा का हिमायती होने का मेरा दावा सही होने के लिए यह परमावश्यक है कि मैं इसके लिए सचमुच में, जी-जान से और अविराम प्रयत्न करता रहूँ। मोत अथ्वा शरीरी अस्तित्व की आवश्यकता से मुक्ति की कल्पना का आधार है सम्पूर्णता को पहुँचे हुए पूर्ण अहिम्सक स्त्री-पुरुषों की आवश्यकता । सम्पति मात्र के कारण कुछ न कुछ हिंसा करनी ही पड़ती है । शरीररूपी सम्पत्ति की रक्षा के लिए भी चाहे कितनी थोड़ी हो, पर हिंसा तो करनी ही पड़ती है । बात यह है कि कर्त्तव्यों के धर्म संकट में से सच्चा मार्ग ढूंढ लेना सहज नहीं है। अन्त में, गीता की उस शिक्षा के दो अर्थ हैं । एक तो यह कि हमारे कामों के मूल में कोई स्वार्थी उद्देश्य नहीं होना चाहिए । स्वराज्य लेने का उद्देश्य स्वार्थपूर्ण नहीं है। दूसरे कर्म फल का मोह छोड़ने का अर्थ यह नहीं है कि उससे अनभिज्ञ रहा जाय या उनकी उपेक्षा की जाय या उनका विरोध किया जाय । मोहरहित होने का अर्थ यह कभी नहीं है कि जिसमें अपेक्षित फल न पावे, इसलिए कर्म करना ही छोड़ दिया जाय । इसके उलटे मोह-हीनता ही इस अचल श्रद्धा का प्रमाण है कि सोचा हुआ फल अपने समय पर जरूर होगा ही । ह्नेिन्दी 'नवजीवन' : १५ मार्च १९२८
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