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१८० युद्ध और अहिंसा

जैसे आप दलील करते हैं और कहते हैं वैसे ही हिंसावादी भी कह सकते हैं कि हम यूरोपियनों के हमले और अत्याचार को रोक नहीं सकते । समुदाय-बल से भी नहीं रोक सकते । परन्तु अगर हम उनके ही शस्त्रों से उनका सामना करके उन शस्त्रों की खराबी उन्हें बतावें तो वे अपनी नीति को बेवकूफी को समझेंगे और हम स्वतंत्र हो जायेंगे तथा अत्याचार से जगत को बचा लेंगे । जहाँतक हमारे राज्यकर्ता हिंसा-बल का उपयोग करते हैं और हमें अत्याचार से तिरस्कार है वहाँतक यह शस्त्र हमसे ही न चिपक जाये इतना ध्यान रखकर उनका उपयोग करते रहने में क्या हानि है ?

यूरोपीय महायुद्ध ने प्रजाश्रों का और ख़ास करके विजेताओं का कुछ भी भला किया है ? युद्ध चाहे जैसा “धम्र्य" हो फिर भी किसी युद्ध में से कोई भी अच्छाई पैदा हो सकती है ? उसमें सक्रिय या निष्क्रिय रूप से भाग लेने की कैसी भी अनुमति देने के बदले उसका विरोध ही करना और इस प्रकार सिद्धान्त पालन करते हुए जो दुःख आवे सो उठा लेना क्या हमारा फर्ज नहीं है ? सक्रिय रूप से लड़ाई में भाग लेनेवाले की बनिस्बत उससे दूर रहनेवाले शान्तिवादी अधिक सिद्धान्त-सेवा करते हैं, क्या ऐसा आप नहीं मानते ? सन् १२१४ में जब आपकी अग्रेजों की न्यायबुद्धि में श्रद्धा थी तब की आपकी मनोवृत्ति आप जैसी कहते हैं वैसी होगी । पर क्या आज वह आपको उचित लगती है? मान लें कि कल लड़ाई शुरू हो तो क्या आप इस आशा में कि लड़ाई बंद हो जाने पर वस्तुस्थिति अधिकसुध-