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युद्ध और अहिंसा


रहा नहीं है।

यहूदियों का सवाल लीजिए। इस प्रश्न मैंने अभी मैंने 'हरिजन' में लिखा है। मेरी दृष्टि से अगर वे अहिंसा का मार्ग स्वीकार करलें तो किसी भी यहूदी को विवशता अनुभव करने की जरूरत नहीं। एक मित्र ने मुझे पत्र लिखकर यह आपत्ति उठाई है कि मैंने अपने लेख में यह मान लिया है कि यहूदी हिंसक हैं। यह सही है कि यहूदियों ने अपने व्यक्तिगत बर्ताव में सक्रिय हिंसा नहीं की है। पर उन्होंने अपने जर्मन विरोधियों पर सारी दुनिया को उजाड़ने का प्रयत्न किया है। उन्होंने अमेरिका तथा इंग्लैड को लड़ाई में कूद पड़ने के लिए सिफ़ारिश की है। अगर मैं अपने विरोधी पर प्रहार करता हूँ, तब तो मैं हिंसा करता ही हूँ। पर अगर मैं सच्चा अहिंसक हूँ, तो जब वह मेरे ऊपर प्रहार कर रहा हो तब भी मुझे उसपर प्रेम करना है, और उसका क्ल्याण चाहता है, उसके लिए ईश्वर से प्रार्थना करनी है। यहूदी सक्रिय अहिंसक नहीं बने हैं। नहीं तो वे अपने विरोधी अधिनायकों के दुष्कृत्यों को क्षमा करते हुए कहते : 'हम उनका प्रहार सहन करेंगे, पर जिस तरह वे अपने प्रहार सहन करना चाहते हैं, उस तरह हम कभी सहन नहीं करेंगे। अगर ऐसा करनेवाला एक यहूदी भी निकल आये, तो यह तमाम अत्याचारो को सहन करते हुए भी अपना स्वाभिमान अखंडित रख सकता है। और वह अपने पीछे एक ऐसा उदाहरण छोड़ जायगा कि जिससे दुनिया के तमाम यहूदियों का