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अद्वितीय शक्ति


बुद्धि तो यही बतलाती है कि दूसरा कोई भी राष्ट्र इस कार्य का अगुआ नहीं बन सकता।

अब हम जरा यह देखें कि इस अद्वितीय शक्ति के अंग में क्या समाया हुआ है। कुछ ही दिन पहले इस चालू युद्ध के सम्बन्ध में अनायास ही कुछ मित्रों ने मुझसे नीचे लिखे ये तीन प्रश्न पूछे थे।

१-अबीसीनिथा, जिसे शस्त्र दुर्लभ है, यदि अहिंसक हो जाये तो वह शस्त्र-सुलभ इटली के मुकाबिले में क्या कर सकता है?

२-यूरोप के पिछले महायुद्ध के परिणाम स्वरूप स्थापित राष्ट्र-संघ का इङ्गलैंड सबसे प्रबल सदस्य हैं। इङ्गलैंड यदि आपके अर्थ के अनुसार अहिंसक हो जाये तो वह क्या कर सकता है?

३-भारतवर्ष आपके अर्थ के अनुसार यदि अहिंसा को एकदम ग्रहण कर ले तो वह क्या कर सकता है?

इन प्रश्नों का उत्तर देने के पहले अहिंसा से उत्पन्न होने वाले इन पाँच उपसिद्धान्तों का आ जाना आवश्यक मालूम होता है:-

(१) मनुष्यों के लिए यथासंभव आत्म-शुद्धि अहिंसा का एक आवश्यक है।

(२) मनुष्य-मनुष्य के बीच मुकाबिला करें तो ऐसा देखने में आयेगा कि अहिंसक मनुष्य की हिंसा करने की जितनी शक्ति होती उतनी ही मात्रा में उसकी अहिंसा का माप हो जायेगा।

यहाँ कोई हिंसा की शक्ति के बदले हिंसा की इच्छा समझने