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क्या करें।


हैं। हाँ, जिन्हें अपने जवाब का निश्चय हो इन्हें मेहरबानी करके दूसरों को भी वैसा ही निश्चितमति बनने में मदद करनी चाहिए।

शान्ति की प्रतिज्ञा लेनेवालों के प्रतिरोध के पक्ष में जो दलीले दी गई हैं उनके बारे में तो कुछ भी कहने की जरूरत नहीं है। हाँ, प्रतिरोध के विरुद्ध जो दलीलें दी गई हैं उनकी सावधानी के साथ छान-बीन करने की जरूरत है। इनमें से पहली दलील अगर सही हो तो वह युद्ध-विरोधी आंदोलन की ठेठ जड़ पर ही फासिस्टों और नाजियों का हृदय पलटना संभव है। उन्हीं जातियों में वे पैदा हुए हैं कि जिनमें तथाकथित प्रजातन्त्रवादियों, या कहना चाहिए खुद युद्धविरोधियों, का जन्म हुआ है। अपने कुटुम्बियों में वे वैसी ही मृदुता, वैसे ही प्रेम, समझदारी व उदारता से पेश आते हैं जैसे युद्ध-विरोधी इस दायरे के बाहर भी शायद पेश आते हों।

अन्तर सिर्फ परिमाण का है। फासिस्ट और नाजी तथाकथित प्रजातन्त्रों के दुर्गुणों के कारण ही न पैदा हुए हों तो निश्चय ही वे उनके संशोधित संस्करण हैं। किली पेज ने पिछले युद्ध से हुए संहार पर लिखी हुई अपनी पुस्तिका में बताया है कि दोनों ही पक्षवाले झूठ और अतिशयोक्ति के अपराधी थे। वरसाई की संधि विजयी राष्ट्रों द्वारा जर्मनी से बदला लेने के लिए की गई संधि थी। तथाकथित प्रजातन्त्रों ने अब से पहले दूसरों की जमीनों को जबरदस्ती अपने कब्जे में किया है और निर्दय