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युद्ध और अहिंसा

 पूर्वक कष्ट-सहन के लिए तैयार हो सके तो ऐसा हत्याकाण्ड भी इस तरह के अभिनंदन और आनन्द का दिन बन सकता है कि यहोवा ने अपनी जाति को मोच्त प्रदान कर दिया, फिर वह चाहे जालिम के ही हाथों कयों न हो। ईश्वर से डरनेवालों के लिए मौत का भय नहीं होता। यह तो ऐसी आनन्दपूर्ण निद्रा है, जिसके अन्त में उत्साहप्रद जागरण ही होता है।

यह कहने की तो शायद ही जरूरत हो कि मेरे नुसखे पर चलना चेकों की बनिस्बत यहूदियों के लिए कहीं आसान है। दचितण अफ्रीका के भारतीय सत्याग्रह-आन्दोलन का उदाहरण भी उनके सामने है, जो कि बिलकुल इसी तरह का था। वहां भारतीयों की लगभग वही स्थिति थी जो जर्मनी में आज् यहूदियों की है। उस अत्याचार को कुछ मजहबी रंग भी दिया हुआ था। प्रेसिडेण्ट क्रूगर अक्सर यह कहा करते थे कि गोरे ईसाई ईश्वर की चुनी हुई श्रेष्ट कृति हैं और भारतीय उनसे नीचे दर्जे के हैं जिनकी उत्पत्ति गोरों की सेवा के ही लिए हुई है। ट्रांसवाल के शासन-विधान में एक बुनियादी धारा यह थी कि गोरों और रंगीन जातियों में, जिनमें कि एशियाई भी शामिल हैं, कोई समानता नहीं होनी चाहिए। वहाँ भी भारतीयों को अलग बस्तियों में बसाया गया था। दूसरी असुविधाएँ भी क़रीब-करीब वैसी ही थीं जैसी कि जर्मनी में यहूदियों को हैं। भारतीयों ने, जिनकी तादाद मुट्ठीभर ही थी, बाहरी दुनिया या भारतीय सरकार के किसी सहारे के बिना उसके बिरुद्ध सत्याग्रह किया। ब्रिटिश