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अगर मैं 'चेक' होता!

 उदाहरण हैं, जो अपने को ‘खुदाई खिदमतगार’ कहते हैं और पठान जिन्हें फख-ए-अफरन' कहकर प्रसन्न होते हैं। जब कि मैं ये पंक्तियाँ लिख रहा हूँ, वह मेरे सामने बैठे हुए हैं। उनकी प्रेरणा पर उनके कई हज़ार आदमियों ने हथियार बाँधना छोड़ दिया है। अपने बारे में तो उनका ख्याल है कि उन्होंने अहिंसा की शक्ति को हृदयंगम कर लिया है; पर अपने आदमियों के बारे में उन्हें निश्चय नहीं है। उनके आदमी यहाँ क्या कर रहे हैं वह सब अपनी आखों से देखने के लिए ही मैं सीमाप्रान्त आय हूँ, या यह कहना अधिक उपयुक्त होगा कि वह मुझे यहाँ लाये हैं। यह तो मैं पहले से ही फौरन कह सकता हूँ कि इन लोगों को अहिंसा का ज्ञान बहुत कम है। इनका सबसे बड़ा खजाना तो अपने नेता में अटुट विश्वास है। इन शान्ति-सैनिकों को मैं ऐसा नहीं समझता जिन्होंने इस दिशा में सम्पूर्णता प्राप्त कर ली हो। मैं तो इनका उल्लेख सिर्फ इसी रूप में कर रहा हूँ कि एक सैनिक अपने साथियों को शांति-मार्ग पर लाने का ईमानदारी के साथ प्रयत्न कर रहा है। यह मैं कह सकता हूँ कि उनका यह प्रयत्न ईमानदारी के साथ किया जा रहा है और अन्त में यह चाहे सफल हो या असफल, भविष्य में सत्याग्रहियों के लिए यह शिक्षाप्रद होगा। मेरा उद्देश्य तो इतने मैं ही सफल हो जाएगा कि मैं इन लोगों के दिलों तक पहुँचकर इन्हें यह महसूस करा दूँ कि अपनी अहिंसा से अगर ये अपने को सशस्त्र स्थिति से अधिक बहादुर अनुभव करते हों तभी ये उसपर