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अगर मैं 'चेक' होता!

हेर हिटलर के साथ जो समझौता हुआ है उसे मैंने 'असम्मानपूर्ण शान्ति' कहा है, लेकिन ऐसा कहने में ब्रिटिश या फेंच राजनीतिज्ञों की निन्दा करने का मेरा कोई इरादा नहीं था। मुझे इस बारे में कोई सन्देह नहीं है कि श्री चैम्बरलेन इससे बेहतर किसी बात का खयाल हो नहीं कर सकते थे, क्योंकि अपने राष्ट्र की मर्यादाओं का उन्हें पता था। युद्ध अगर रोका जा सकता हो तो वह उसे रोकना चाहते थे। युद्ध को छोड़कर, चेकों के पक्ष में उन्होंने अपना पूरा जोर लगाया। इसलिए आत्मसम्मान को भी छोड़ना पड़ा तो इसमें उनका कोई दोष नहीं है। हेर हिटलर या सिन्योर मुसोलिनी के साथ झगड़ा होने पर इस बार ऐसा ही होगा।

इससे अन्यथा कुछ हो ही नहीं सकता, क्योंकि प्रजातन्त्र खूनखराबी से डरता है। और जिस तत्त्वज्ञान को इन दोनों अधिनायकों ने अपनाया है वह खूनखराबी से बचना कायरता समझता है। वे तो संगठित हत्या की प्रशंसा में सारी कवि-कला