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कुछ टीकाओं के उत्तर


के दरबार में उसे साफ हाथ लेकर जाना चाहिए। आज़ादी और लोकशासन की रक्षा वह युद्ध में जर्मनी था इटली के जैसे तरीकों से युद्ध चलाकर नहीं कर सकेगा। हिटलर को हिटलर की पद्धति से मात करके वह बाद में अपनी तर्ज को बदल न सकेगा। गत युद्ध पुकार-पुकारकर हमें यही सिखाता है। इस तरह से प्राप्त की हुई विजय एक खतरनाक जाल और धोखे की टट्टी साबित होगी। मैं जानता हूँ कि आज मेरी पुकार अरण्यरुदन ही है, परन्तु एक दिन दुनिया इसकी सच्चाई को पहचानेगी। अगर प्रजातन्त्रवाद या स्वतन्त्रता को विनाश से सचमुच बचाना है तो वह शांत, परन्तु सशस्त्र मुकाबले से कहीं अधिक प्रभावशाली और तेजस्वी मुकाबले द्वारा ही हो सकेगा। यह मुकाबला सशस्र मुकाबले से अधिक वीरतापूर्ण और तेजस्वी इसलिए होगा कि इसमें जान लेने की बात नहीं, केवल जान पर खेल जाने की बात है।

'हरिजन-सेवक' : ५ अक्तूबर,१९४०