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कुछ टीकाओं के उत्तर


लड़ाई किसलिए चाहिए? इसका मतलब यह नहीं कि वे जो कुछ कहते हैं ठीक है। परन्तु न तो अंग्रेज़, न जर्मन और न इटालियन जनता यह जानती है कि वह क्यों युद्ध में पड़ी है? सिर्फ उसकी अपने नेताओं पर श्रद्धा है इसीलिए वह उनके पीछे-पीछे चलती है। मेरा कहना यह है कि आधुनिक युद्ध-जैसे भीषण हत्याकांड में इस तरह अन्धश्रध्दा से कूद पड़ना ठीक नहीं। मेरी इतनी बात तो मेरे टीकाकार भाई भी कबूल करेंगे कि अगर आज जर्मन और इटालियन जनता से पूछा जाय कि अंग्रेज बच्चों की निर्दयतापूर्वक हत्या करना या सुन्दर अंग्रज घरों की ईंट से ईंट बजाना किस तरह से मुनासिब या जरूरी है, तो वह कुछ समभा न सकेंगे। मगर टाइम्स’ शायद यह कहना चाहता है कि इस बारे में अंग्रेज प्रजा औरों से निराली है; वह जानती है कि वह किसलिए लड़ रही है। जब में दक्क्षिण आफ्रीका में अंग्रेज सिपाहियों से पूछता था कि वे क्यों लड़ रहे हैं, तो वे मुझे कुछ जवाब न दे पाते थे। वे तो अंग्रेज कविरत्न टेनीसन की इस उक्ति के अनुयायी थे कि “सिपाही का धर्म बहस करना नहीं, लड़ मरना है।' वे इतना भी नहीं जानते कि कूच करके उन्हें कहाँ जाना है? अगर आज लंदन के लोगों से पूछूँ कि उनके हवाई जहाज़ आज बर्लिन की तबाही क्यों कर रहे हैं, तो वे मुमे औरों की अपेक्षा अधिक संतोषकारी जवाब न दे सकेंगे। अखबारों में जो खबरें छपती हैं वे अगर भरोसे के क़ाबिल हैं तो अंग्रेजों की हिकमत और बहादुरी ने बर्लिन-निवासियों का जैसा कचूमर