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92 / यह गली बिकाऊ नहीं
 


"मेरी तंबीयत ठीक नहीं है। अगर जल्दी हो तो किसी के हाथ भिजवा दीजिए। हस्ताक्षर कर दूंगी।" उसके यहाँ जाने से बचने के लिए उसने यह बहाना बताया। उसे इस काम में सफलता मिली। गोपाल यह मान गया कि वह ड्राइवर के हाथा आवेदन आदि पर हस्ताक्षर करने को भेज देगा।

उसे मालूम था कि मुन्तकुमरन् फोन नहीं करना चाहेगा। लेकिन उसे भी फोन करने से भय-संकोच होता था। पिछली रात को मुत्तकुमरन ने जो उत्तर दिया था, वह अब भी उसके मन में खटक रहा था। मुत्तकुमरन की कड़ी बातों से बढ़कर उसे अपनी ही ग़लती कहीं ज्यादा अखर गयी। मुत्तुकुमरन के क्रोध की वह कल्पना भी नहीं कर सकी।

उस दिन वह बड़ी उधेड़बुन में पड़कर घर पर ही रह गयी। बाहर कहीं नहीं गयी। गोपाल का ड्राइवर दो बजे के बाद आया और कागजों पर हस्ताक्षर ले चला गया। उसे इस बात की चिंता सताने लगी कि फॉर्म आदि भरकर मुत्तकुमरन से इस तरह के हस्ताक्षर लिये होंगे कि नहीं? क्योंकि उसे इस बात का डर सताने लगा था कि पिछली रात की घटना से मुत्तकुमरन उससे और गोपाल से नाखुश हैं। इसलिए संभव है कि मलेशिया जाने से इनकार कर दे। एक ओर निष्कलंक वीर के आत्माभिमान और कवि के विद्या-गर्व से भरे मुत्तकुमरन की याद में उसका दिल द्रवित हो रहा था और दूसरी ओर उसके निकट जाते हुए डर भी लग रहा था। उस पर अपार प्रेम होने से और उस प्रेम के भंग हो जाने के डर से वह बड़ी दुविधा में पड़ गयी। उसने यह निश्चय किया कि यदि मुत्तकमरन मलेशिया जाने के डर से इनकार कर दे तो उसे भी वहाँ नहीं जाना चाहिए। इस तरह का निर्णय लेने की। हिम्मत उसमें थी। लेकिन उस हिम्मत को कार्य रूप देने की हिम्मत नहीं थी।

जनवरी के प्रथम सप्ताह से तीसरे सप्ताह तक मलेशिया और सिंगापुर में भ्रमण करने का आयोजन हुआ था। मुत्तुकुमरन को साथ लिये बिना, सिर्फ गोपाल के साथ विदेश भ्रमण करने को उसका मन नहीं हो रहा था। जीवन में पहली बार और अभी अभी उसके हृदय में गोपाल के प्रति भय और भेदभाव के अंकुर फुटे थे।

गोपाल के बंगले में काम करनेवाले छोकरे नायर को फ़ोन पर बुलाकर माधवी ने पूछा, "तुम्हें यह पता है कि नाटक लिखने वाले बाबू मलेशिया जा रहे हैं या नहीं?" पर उसे इस बात का कुछ अधिक पता नहीं था। ज्यादा पूछने पर, 'आप ही पूछ लीजिये कहकर वह आउट हाउस का फ़ोन मिला देगा। ऐसी हालत में वह क्या बोले ओर कैसे बोले। यह भय-संकोच अब भी उसके मन से नहीं गया था।

मुत्तुकुमरन् से घर पहुँचाने की प्रार्थना करके, गोपाल के साथ घर लौटने की अपराधी भावना उसके दिल में कुंडली मारे बैठ गयी थी और बाहर होने का नाम ही नहीं लेती थी! तो बेचारी क्या करे? दूसरे दिन भी तबीयत खराब होने