यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
यह गली बिकाऊ नहीं/91
 
तेरह
 


उस रात वह सोयी ही नहीं । आँसुओं से तकिया गीला हो गया। वह यह अनुमान नहीं लगा सकी कि उसका मन कैसे और कहाँ से कमजोर हुआ कि मुत्तुकुमरन को घर पहुँचाने के लिए साथ चलने की प्रार्थना करने और उसके तुरन्त मानकर साथ चले आने के बाद भी वह उसे ठुकराकर, गोपाल के साथ कार में चल पड़ी थी। अब अपनी करनी पर सोचते हुए उसे स्वयं ग्लानि का अनुभव हो रहा था।

वह इस सोच में पड़ गयी कि कल कौन-सा मुंह लेकर मुत्तुकुमरन् से मिलूंगी! गोपाल के स्वयं घर पहुंचाने के लिए तैयार हो जाने पर, मैं उसका मन रखने के लिए कैसे मान गयी ? यह सोचते हुए अपनी करनी पर उसे हैरानी हो रही थी।

मुबह उठने पर उसे एक दूसरी हैरानी का सामना करना पड़ा। उसकी वजह से गोपाल से मिलने में भी उसे संकोच का अनुभव हो रहा था। दरअसल डर लग रहा था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करे? कारण आज की पहली डाक से उसके नाम 'जिल जिल' का ताजा अंक आया था, जिसमें मुत्तुकुमरन् से कनियन की भेंट-वार्ता छपी थी। 'जिल जिल' कनियळकन ने भेंटवार्ता के बीच एक फ़ोटो भी छपवाया था। मुत्तुकुभरत् और माधवी के अलग- अलग चित्रों को कैची की करामात से काट-छाँटकर ऐसा एक ब्लाक बनवाया गया था, जिसमें दोनों सटकर खड़े थे । भेंट के बीच मुत्तुकुमरन की जुबानी यह बात छापी गयी थी कि माधवी जैसी लड़की मिले तो मैं शादी करूँगा । इसे पढ़कर उसे कनियळकन पर क्रोध चढ़ आया । माधवी ने सोचा कि जिस प्रकार मेरे नाम 'जिल . जिल' का यह अंक आया है, उसी प्रकार गोपाल और मुत्तकुमरन के नाम भी गया होगा । उसने यह अनुमान लगाने का भी प्रयत्न किया कि इसे पढ़कर गोपाल के मन में कैसी-कैसी भावनाएँ सिर उठाती होंगी !

उसका मुत्तुकुमरन के साथ एक चित्र में सटकर खड़े होने और मुत्तुकुमरन् के मुँह से उस जैसी लड़की से शादी की बातों को देख-पढ़कर गोपाल कसे जल उठेगा? यह बात वह एक भुक्तभोगी की भाँति जानती थी। इसलिए उस दिन उन दोनों से मिलने में उसे भय-संकोच हो रहा था।

उसने मन में निश्चय किया कि आज माबलम की तरफ़ न जाना ही अच्छा है ताकि मुत्तुकुमरन् या गोपाल से मुलाकात नहीं हो पाये। लेकिन अप्रत्याशित रूप से ग्यारह बजे के करीब गोपाल ने उसे फोन पर बुलाया और बोला, "पासपोर्ट जैसे कुछ जरूरी कागजात पर दस्तखत करना है। एक बार आ जाओ।"