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86/यह गली बिकाऊ नहीं
 


चाहता था। अब्दुल्ला की कदर करते हुए वह उससे कला की बात करे तो वह कला के प्रति द्रोह हो जाएगा और कला की हत्या का पाप सिर पड़ेगा-यह सोचकर वह पैर-पर-पैर चढ़ाये चुपचाप बैठा रहा ।

उसकी इम मनोदशा को माधवी ने पढ़ लिया। अब्दुल्ला की बातों की लीक बदलने के विचार से बोली, "पिछले महीने 'गंगा नाटक-मंडली' मलेशिया गयी थी न ? सुना है कि आप ही की 'कांट्रेक्ट' पर वहाँ गयी थी। वह वहाँ नाम-यश भी प्राप्त कर पायी?"

"अब्दुल्ला की कांट्रेक्ट हो तो नाम आप-ही-आप हो जाता है । हमारी कंपनी पचीस सालों से नाट्य-मंडली या नाटक कंपनियों को तमिळनाडु से ले जाती है और वहाँ प्रोग्राम चलाती है। मलेशिया में अब्दुल्ला कंपनी का एक भी प्रोग्राम अब तक नाकामयाब नहीं हुआ। इसे बड़ी-बड़ी बात न मानिए तो अब्दुल्ला कंपनी की यह खुसूसियत है !"

"कंपनी के बारे में हमने बहुत कुछ सुन रखा है ।"

"हम पेशे से डायमंड मर्चेट हैं, जौहरी हैं । कला के प्रोग्राम तो शौक के लिए करते हैं।"

मुत्तुकुमरन् उन बातों से ऊब गया तो उसने माधवी को इशारा किया। "चलिए ! गोपाल साहब आपका इंतजार करते होंगे ! जल्दी चलें तो अच्छा हो।"

माधवी के कहने पर अब्दुल्ला कपड़े बदलने अंदर चले गये।

कमरे में ड्रेसिंग टेबुल में आईने के पास विभिन्न सेंटों की छोटी-बड़ी शीशियाँ करीने से सजी थीं। अब्दुल्ला कपड़े बदलकर एक आईने के सामने जाकर खड़े हुए और एक शीशी खोलकर शरीर पर 'सेंट लगाने लगे। इन्न की खुशबू सारे कमरे में बिजली की तरह फैल गयी। एक दूसरी शीशी में लगे 'स्त्रे' से गले और कुरते के कॉलर में 'सेंट छिड़क ली। कपड़े बदलने और तैयार होने में उनमें जेम्स बांड की-सी फुर्ती थी। उनकी एक-एक बात और अदा में शौक चर्रा रहा था।

उन्होंने होटल के बैरे को बुलाकर चाय मँगवायी। मना करने पर भी नहीं माना। चाय तैयार कर वे तीनों प्यालों में डालने लगे तो माधवी मदद को आगे बड़ी। यह देखकर अब्दुल्ला बहुत खुश हुए।

मुत्तुकुमरत् सब से बैठा था । चाय पीते ही तीनों चल पड़े। जाते-जाते माधवी ने उस स्प्रे वाली शीशी के बारे में पूछा । "लीजिए, इस्तेमाल कीजिए!" कहते हुए अब्दुल्ला ने वह शीशी उठाकर माधवी को दे दी।

नहीं, मैंने यों ही पूछा था !" कहकर माधवी ने लेने से इनकार किया तो, नो, नो ! कीप इट': 'डोंट रिफ्यूज " कहकर उसके हाथ में थमाकर ही अब्दुल्ला ने दम लिया।