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यह गली बिकाऊ नहीं/71
 


"वह कैसे ? आप और मैं मिलकर जिस किसी दुनिया में रह सकते हैं, वैसी कोई दुनिया रह ही नहीं सकती।"

"अजी साहब! हम दोनों इस तरह बोलते रहें तो भेंट-वार्ता की एक पंक्ति भी नहीं लिखी जा सकती!"


"चिंता मत कीजिए । आपको जो चाहिए, पूछिए, बता देता हूँ !"

"वह तो मैंने पूछ ही लिया ! आप ही ने अब तक कोई उत्तर नहीं दिया !

नहीं तो मैं एक काम करता हूँ ! मैं एक ऐसी भेट-वार्ता लिखकर लाता हूँ, जिसमें आप जवाब देते हैं और मैं सवाल करता हूँ। सवाल-जवाब मैं फिट कर लूंगा।

उसमें आप अपना दस्तखत भर कर दीजियेगा, बस !"

"पढ़कर दस्तखत करूँ, या बिना पढ़े ही कर दूं?"

"आपकी मर्जी ! पढ़ना चाहें तो पढ़ कर कीजिएगा।"

मुत्तुकुमरन् को यह सुनकर बड़ा गुस्सा आया लेकिन ' जिल जिल' जैसे चापलूस को एक आदमी मानकर, उसपर अपना क्रोध उतारने के विचार तक को वह मन में नहीं लाना चाहता था । पर 'जिल जिल' का मुंह खुलवाकर गप्पें लड़ाने की इच्छा जोर मार रही थी। उसके पहले, सवाल के जवाब में अपनी जन्म-तिथि, कुटुंब की गरिमा, मदुरै की बाय्स् कंपनी की नौकरी आदि का विवरण दिया और अगले सवाल की उससे प्रतीक्षा की। दूसरा सवाल करने के पहले ही जिलजिल' ने थके-हारे मन से जेब से सिगरेट की डिब्बी निकाली और एक सिगरेट निकालकर मुत्तुकूमरन् के आगे बढ़ायी । मुत्तुकुमरन ने इनकार करते हुए कहा, "नहीं, धन्यबाद ! बहुत दिनों तक यह आदत पाले रहा । अब कुछ दिनों से छोड़ दी है।"

"अरे, रे ! कला की दुनिया में जिन योग्यताओं की जरूरत होती है, उनमें एक भी आप में नहीं है !"

"मिस्टर जिल जिल ! अभी आपने जो कुछ कहा, उसका क्या मतलब है ?"

"सुधनी, पान-सुपारी, तम्बाकू, सिगरेट, शराब, औरत-इनमें एक भी न हो तो कोई कलाकार कैसे हो सकता है ?"

"कोई हो तो नहीं मानेंगे क्या?"

"नहीं, ऐसी बात नहीं है ! मेरा मतलब है ..." कहते हुए 'जिल जिल' ने सिगरेट सुलगायी।

उस' कूबड़ शरीर वाले 'जिल' जिल' को धुआँ निगलते-उगलते देखकर मुत्तुकुमरन को तमाशा-सा लगा । इस बीच' 'जिल जिल' ने अपना दूसरा सवाल 'शुरू किया, "आपका लिखा या खेला हुआ पहला नाटक कौन-सा है ?"

"इतना जरूर याद है कि मैंने कोई नाटक लिखा है और खेला है ! पर वह कौन-सा रहा होगा, यही याद नहीं आता !"

"सर, इस तरह के जवाब का हम क्या करेंगे? आपके सभी जवाब एक जैसे