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50/यह गली बिकाऊ नहीं
 


"यह जिल-जिल कौन है ? बरफ़ की कोई फैक्टरी' चलाता है क्या ?"

"नहीं ! 'जिल-जिल' नाम से फ़िल्मी पत्रिका निकालते हैं। अंगप्पन के बड़े दोस्त हैं !"

"और हमारे गोपाल इन दोनों के बड़े दोस्त हैं ! यही न?"

"हाँ ! गोपाल के इशारे पर कितने ही स्टूडियो बाले बढ़िया सीन और सेटिंग तैयार कर देने को तैयार हैं। उन सबको छोड़कर ये अंगप्पन के हाथ सिर दे रहे हैं। वह इन्हें बढ़ा चढ़ाकर तंग कर छोड़ेगा।"

"बह जाये तो जाये ! हमें जाने की क्या ज़रूरत है ?"

"हो न हो, हमें गोपाल बाबू नहीं छोड़ेंगे। साथ लेकर ही जाएँगे !' "मेरे ख़याल में तो हम दोनों को जाने की कोई जरूरत नहीं ! तुम्हारा क्या -- ख़याल है ?"

"वह कुछ अच्छा नहीं होगा ! कल की बात पर ही वे जल-भुन रहे हैं ! आज हम दोनों जाने से इनकार करें तो यह ज़ख्म पर नमक छिड़कनेवाली बात हो जाएगी। इसलिए आपको भी जाना ही चाहिए। अगर आप ह करेंगे तो भी मुझे जाना ही पड़ेगा । नाहक मनमुटाव क्यों बढ़ाएँ ?"

“मगर मैं तुम्हें रोकूँगा तो क्या करोगी?"

"समझदार होंगे तो नहीं रोकेंगे !"

"तो क्या मुझे नासमझ समझती हो?"

"नहीं ! मैं आपकी. हर बात मानने को तैयार हूँ और इस बात पर भी विश्वास करती हूँ कि मुझ पर दबाच डालते हुए मुझे मना नहीं करेंगे और मेरे प्रेम को कसौटी पर नहीं कसेंगे।"

"अच्छा ! फिर तो मैं चलता हूँ। जिल-जिल और अंगप्पन को मुझे भी देखना चाहिए न?"मुत्तुकुमरन् ने उसका मन न दुखाने के विचार से मान लिया तो माधवी ऐसी खुश हुई, मानो अपने आराध्य देवता से कोई अभीप्सित वर पा लिया हो !

"आपकी उदारता पर मुझे बड़ा गर्व होता हैं !"

"मेरी प्रतिभा किसी के आगे नहीं झुकती ! पर तुम्हारे आगे...?" कहते- कहते उसके होठों पर मुस्कान खेल गयी।

इसी समय गोपाल जिल-जिल' कनियळकन के साथ वहां आया और उसका परिचय कराते हुए बोला, "आप हैं 'जिल जिल' के सम्पादक कनियळकु और आप मुत्तुकूमरन्, मेरे बड़े प्यारे दोस्त ! हमारे लिए एक नया नाटक लिख रहे हैं।"

दिसंबर का महीना, सरदी का मौसम ! तिसपर जिल-जिल साहब दिल को ठंडक पहुँचाने पधारे हुए हैं । शायद इसीलिए तन-मन ठिठुर रहा है !" मुत्तुकुमरन् के. मुंख से यह ताना सुनकर माधवी होंठों ही होंठों में मुस्करा पड़ी।

"मुत्तुकुमरन् साहब तो बड़े विनोदी हैं ! बात-बात में हास्य का रस फूटता