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32/यह गली बिकाऊ नहीं
 


मुत्तुकुमरन के अंहकार और गर्व पर वह फूली न समायी । वह उसपर जान देने को तैयार हो गयी।

चाय-पार्टी के बाद गोपाल उठा और मेहमानों को मुत्तुकुमरन् का परिचय देते हुए बोला-

"मुत्तुकुमरन् और मैं वायस् कंपनी के समय से ही अभिन्न मित्र हैं । मेरा जाना-पहचाना पहला कवि मुत्तुकुमरन ही है । उन दिनों 'बायस् कंपनी के दिनों में हम दोनों एक चटाई पर सोते रहे । मैं उसे 'उस्ताद' के नाम से पुकारता था । अब भी कई बातों में वह मेरा उस्ताद है । उसके सहयोग से मैंने यह नाटक मंडली शुरू की है । मैं यकीन दिलाता हूँ कि यह कई महत्वपूर्ण सफल नाटक प्रस्तुत कर दर्शकों के दिलों में स्थान पायेगा । इसके लिए आप लोगों का पूर्ण सहयोग और प्रेम चाहिए ,

बस !"

उसके इस परिचय-भाषण के बाद कुछ पत्रकारों ने गोपाल और मुत्तुकुमरन को एक साथ खड़ा किया और फ़्लैश फोटो खींचा।

इस प्रकार, उन्हें तस्वीरें उतारते देखकर मुत्तुकुमरन ने जरा परे खड़ी माधवी को बुलाकर उसके कानों में कहा, "लगता है, इस तरह हम दोनों को साथ खड़ाकर कोई फ़ोटो नहीं लेगा!"

"तो क्या, हम खुद ही खिचवा लेंगे !"---कहकर माधवी हँसी।

उसका यह उत्तर मुत्तुकुमरन को बहुत अच्छा लगा।

वाद को गोपाल ने मुत्तुकुमरन् से विनती की कि वह भी मेहमानों को कुछ सुनाये।

मुत्तुकुमरन् बात-बात पर मेहमानों को हँसाता हुआ बोला । दो-तीन मिनट में ... ही वे उसके वशीभूत हो गये । उसको हँसी-मजाक भरी बातों से श्रोताओं का बड़ा मनोरंजन हुआ।

"मैं मद्रास के लिए नया हूँ!"-इन शब्दों से उसका भाषण शुरू हुआ और आधे घंटे तक जारी रहा । मेहमान मंत्र-मुग्ध-से रह गये । पार्टी के अंत में माधवी ने एक गाना गाया: 'मेरी आँखों से मेरे मन में समा जाओ।'

मुत्तुकुमरन् को लगा कि वह उसी के स्वागत में ये पंक्तियाँ गा रही है। उसने पाया कि उसे गाने गाना भी अच्छी तरह आता है। मधुर स्वर में दिल को जीत लेने वाले गीत को सुनकर वह उसपर मुग्ध हो गया।

पार्टी के बाद विदा लेते हुए सब लोग पहले गोपाल और बाद को मुत्तुकुमरन् से हाथ मिलाकर विदा हुए। मुत्तुकुमरन् से विदा लेते हुए कोई भी उसके भाषण की तारीफ करना नहीं भूला। मुत्तुकुमरन को इतनी जल्दी लोगों के दिल में स्थान मिल गया, यह देखकर गोपाल फूला नहीं समाया।

सबके जाने के बाद मुत्तुकुमरन् ने माधवी से कहा, "वाह ! तुम तो बहुत खूब