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यह गली बिकाऊ नहीं/25
 

था कि वह टाइप करना भी जानती है । उसी से कह दूँगा कि वह 'टाइप' कर दे। 'टाइप करते-करते उसे संवाद भी याद हो जाएंगे।"

"बड़ा अच्छा विचार है । इस तरह कोई कथा नायिका ही साथ रहकर 'हेल्प' करे तो मैं भी नाटक जल्दी लिख डालूंगा।"

'कल ही एक नये 'टाइप राइटर' के लिए ऑर्डर दे देता हूँ !"

"जैसे तुम एक-एक चीज़ का 'आर्डर' देकर भगा लेते हो, वैसे मैं अपनी कल्पना को 'ऑर्डर' देकर तो नहीं मँगा सकता । वह तो धीरे-धीरे ही उभर करआयेगी!

"मैं कोई जल्दी नहीं करता। इतना ही कहा कि नाटक जरा जल्दी तैयार हो जाए तो अच्छा रहेगा। चाय, कॉफी, ओवल--जो चाहो, फोन पर मँगा लो !"

"सिर्फ चाय, कॉफ़ी या ओवल ही मिलेगी ?"

"जो चाहो में 'वह' भी शामिल है !"

"फिर तो तुम मुझे उमर खैयाम बना दोगे?"

"अच्छा, मुझे देरी हो रही है । दस बजे काल शीट' है !" कहकर गोपाल चला गया।

मुत्तुकुमरन ने 'आउट हाउस' के बरामदे से देखा की सूरज की रोशनी में हरी घास और निखर उठी है। और गुलाब की लाली माधवी के अधरों की याद दिला रही है । अंदर फ़ोन की घंटी बजी तो उसने फुर्ती से जाकर 'रिसीवर' उठाया।

"मैं माधवी बोल रही हूँ !"

"बोलो, क्या बात है "

"अभी 'सर' ने फोन पर बताया था..."

"सर माने...?"

.."अभिनेता सम्राट ! मैं कल से स्क्रिप्ट 'टाइम करने के लिए आ जाऊँगी । मेरे आने की बात सुनकर आप खुश हैं न ?"

"आने पर ही खुश हूँगा।"

दूसरे छोर से हँसी की खिलखिलाहट सुनायी दी।

"टाइप करने के लिए तुम आओगी, गोपाल के. मुँह से यह सुनकर मैंने उसे क्या कहा, मालूम है ?"

"क्या कहा ?"

"सुनकर तुम खुश होगी ! कहा कि जब कथा-नायिका साथ रहकर 'हेल्प' करेगी तो मैं नाटक जल्दी लिख डालूँगा।"

"यह सुनकर मेरे दिल पर क्या बीत रही है, यह आप जानते हैं ?"

"सुनाओ तो जानूँ !"

"कल वहाँ आने पर ही बताऊँगी !" वह चुटकी लेकर बोली। उधर से फ़ोन रखने की आवाज आयी तो मुत्तुकुमरन् रिसीवर रखकर मुड़ा।