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152 / यह गली बिकाऊ नहीं
 


किसी औरत को समाज की लम्बी सड़कों पर निडर और निस्संकोच होकर चलना है तो ऐसी एक सुरक्षित खाट से उतरकर ही वह चल सकती है। समाज की सड़कों में आज भी कई रावण निरन्तर विचरण कर रहे हैं।"

"आप अब्दुल्ला की बात कर रहे हैं?"

"अब्दुल्ला, गोपाल―सभी की। एक से दूसरा, दूसरे से तीसरा होड़ लगाकर अभिनय कर रहा है।"

वह बिना कोई उत्तर दिये, उसके हृदय से लिपट गयी। उसी हृदय ने उसे ऐसा सुख दिया कि आज वह अपनी निजी खाट पर सुख की नींद ले रही हो।

मर्दों के समाज में, जब पहले रावण का जन्म हुआ, तभी इस बात का पक्का निश्चय हो गया था कि औरतों को सोने के लिए एक ऐसी ही खाट और एक ऐसे ही साथी की ज़रूरत है।

जब तक रावणों का गुट समाज में विद्यमान है, तब तक नारी समाज धूल-धूसरित गंदी गलियों में, बिना साथी के, अकेले जा कैसे सकता है? कौन जाने, समाज की वह गंदी गली कब साफ़-सुथरी होगी?