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यह गली बिकाऊ नहीं / 151
 

"यह भी कैसी गुस्ताखी है!" होंठों पर उँगलियाँ रखकर उसने उसे डाँटने का अभिनय किया तो मुत्तुकुमरन् उसपर ऐसा रीझ गया कि उसकी हर बात में, हर हाव-भाव में अनेकों गूढ़ार्थ टपकते-से मालूम हुए। अभिधा, लक्षणा, व्यंजना, रस, छंद एवं अलंकारों से गुम्फित कविता-सी माधवी उसकी कल्पना की आँखों में उभर आयी। उसने दोनों होंठों पर उँगलियाँ रखकर डाँटने का जो अभिनय किया था; उससे उसके सत्य, शिव, सुन्दर स्वरूप को कविता में चित्र-रूप देने की इच्छा मुत्तकुमरन् के मन में उमग रही थी। पर तब तक टैक्सी माधवी के घर के द्वार पर जा खड़ी हुई थी। माधवी की माँ ने उनका सहर्ष स्वागत किया।

टैक्सी का भाड़ा चुकाते हुए मुत्तुकुमरन से टैक्सीवाले ने पूछा, "इन्होंने फिल्मों में काम किया है न?"

"हाँ, किया है। पर आगे नहीं करेंगी।" मुत्तुकुमरन् ने निर्मम उत्तर दिया।

माधवी पहले ही उतरकर घर के अंदर चली गयी थी। अंदर जाते ही मुत्तुकुमरन ने पहला काम यह किया कि माधवी से टैक्सीवाले के प्रश्न और अपने उत्तर को ज्यों-का-त्यों दुहराया।

सुनकर माधवी हँसी और बोली, “वह टैक्सी ड्राइवर आप पर जहर उगलते हुए कह गया होगा कि आपकी वजह से सिने-दुनिया को बड़ा नुकसान पहुंच गया!"

"ऐसा कभी नहीं होगा। नुकसान भरने के लिए न जाने कितनी उदयरेखायें आ धमकेंगी!"

माधवी एक बार फिर हँस पड़ी।

अगले शुक्रवार को गुरुवायुर के श्रीकृष्ण के मन्दिर में मुत्तुकुमरन् और माधवी का शुभ-विवाह सम्पन्न हुआ। न किसी रसिक के पास से बधाई का पत्र आया और न कोई प्रसिद्ध फ़िल्म-निर्माता उस विवाह को सुशोभित करने को पधारा। विवाह के उपरांत उनसे प्रणाम लेने के लिए सिर्फ़ माधवी की माँ उपस्थित थी।

उस दिन रात को वे एक टैक्सी करके मावेली करै पहुँचे। मावेली करै माधवी की जन्म-स्थली थी। फिर भी वहाँ उसके लिए कोई घर-द्वार नहीं था। वे किसी रिश्तेदार के यहाँ उस रात को ठहरे। रात के भोजन के बाद माधवी और मुत्तुकुमरन् के एकांत के लिए एक कमरा मिला तो माधवी बोली, "देखा, सभी ने मिलकर साजिश करके इस कमरे में एक ही खाट छोड़ी है।"

वह हँसा। माधवी उसके निकट गयी। उसके केश-भार में बेले के फूल गमा-गम महक रहे थे। मुत्तुकुमरन् ने उसे पास खींचकर बिठाया और उसका सिर ऐसा चूमा कि बेले की महक से उसकी नासिका भर गयी।

"माधवी! न जाने कितनी सदियाँ पहले इस बात का निर्णय हो चुका है कि