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यह गली बिकाऊ नहीं/131
 

देंगे।"

"कौन ? गोपाल?"

"हाँ ! मैंने प्लेन में ईप्पो आने से इनकार कर दिया था न । उसके लिए ही चीख रहे थे।"

"कला एक लड़की के पेट और सुख-सुभीते का जितना ख्याल करती है, उतना उसके तन-मन की पवित्रता का ख्याल नहीं करती। यह कैसी विडंबना है।"

वह इसका कोई उत्तर नहीं दे सको । उसे देखने की भी हिम्मत उसमें नहीं रही । मुँह नीचा कर जमीन देखने लगी।

उदयरेखा के साथ अब्दुल्ला और गोपाल कैमरान हाईलैंड्स चले गये । यह तय हुना था कि उनके वहाँ से लौटने के बाद सब ईप्पो से क्वालालम्पुर चलेंगे। उस दिन माधवी और मुत्तुकुमरन् एक-दूसरे सह-अभिनेता को साथ लेकर, एक टैक्सी करके ईप्पो और ईप्पो के आस-पास के चुंग, चुंगे-चिप्पुट, कंधार आदि दर्शनीय स्थलों का परिदर्शन कर आये । चुंग चिप्पुट में सहकारिता की महिमा पर आधारित रबर का बगीचा और महात्मा गांधी के नाम पर संचालित गाँधी पाठ- शाला--दोनों ही उन दर्शनीय स्थलों में अविस्मरणीय थे। सड़क के दोनों ओर पर्वतीय स्थल ऐसा अनुपम दृश्य उपस्थित करते थे, मानो मोम की बत्तियाँ पिघल कर सुन्दर बेलबूटों का चित्रण करती हों। सभी स्थानों से धूम-धामकर वे साढ़े सात बजे के करीब लौट गये। लेकिन कैमरान हाईलैंड्स जानेवालों को लौटने में रात के दो बजे से भी अधिक बीत गये।

दूसरे दिन बड़े सवेरे गोपाल, अब्दुल्ला और उदयरेखा--तीनों हवाई जहाज से और बाकी सारे सदस्य कार से क्वालालम्पुर को चल पड़े। सीन-सेटिंग आदि को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए अब्दुल्ला ने लॉरी की व्यवस्था करवा दी थी। अतः वे नियमित रूप से ठीक समय पर उन जगहों पर पहुँच जाया करती थी।

माधवी के विचार से अब्दुल्ला उदयरेखा को इसीलिए हवाई जहाज पर ले जा रहा था ताकि उसके बहकावे में आकर माधवी भी उसके रास्ते आ जायेगी । उसे बेचारे अब्दुल्ला पर तरस आ रहा था । उसने मुत्तुकुमरन से कहा, "किसी कोने में अबतक पड़ी उदयरेखा के भाग्य में मलेशिया आने पर कैसा भोग लिखा है, देखिये !"

. "क्यों, उसके भाग्य पर तुम्हें ईर्ष्या हो रही है क्या?"

"छिः ! कैसी बातें करते हैं आप? मैंने इस संयोग की बात कही तो इसका यह मतलब नहीं कि मुझे उस पर ईर्ष्या हो रही है। उसी के आने से तो मैं बच पायी । इसका मुझे उसका आभार मानना चाहिए।"

"नहीं तो!"