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130/यह गली बिकाऊ नहीं
 


"बात यह है कि अब्दुल्ला करोड़पति हैं। उनका दिल आ गया तो वह पाँवों पर करोड़ों रुपये लाकर उड़ेल देंगे।"

"जहाँ चाहे, उड़ेलें!"

"तुम बेकार ही बदल रही हो।"

"हाँ, बदल गयी ! आप समझ गये हों तो ठीक है।"

"उस्ताद ने तुमपर कौन-सा टोटका कर दिया है कि तुम उसपर इस तरह फिदा हो गयी हो।"

उसके कमरे में आकर गोपाल का लम्बी देर तक बातें करना माधवी को नहीं भाया। उसके मुंह से बू आ रही थी कि वह पीकर आया है। इधर वह उसे विदा करने की कोशिश में थी और उधर वह हिलने का नाम नहीं लेता था । बातें करते- करते गोपाल में अचानक एक हैवानी जोश पैदा हुआ और उसने झपटकर माधवी को अपनी बाँहों में कसने का प्रयत्न किया। माधवी को इस बात की आशा नहीं थी। अपने हाथों से पूरी तरह उसे झटकते हुए उसने उसे धक्का दिया और किवाड़ खोल- कर कमरे से बाहर भागी और सीधे मुत्तुकुमरन के कमरे में जाकर किवाड़ खट- खटाया । मुत्तुकुमरन ने किवाड़ खोला तो उसने माधवी को बड़ी परेशानी की हालत में देखा । उसने हैरानी से पूछा, "बात क्या है ? इस तरह क्यों काँप रही हो?"

"अन्दर आकर बताती हूँ।" कहकर वह उसके साथ अन्दर आ गयी।

किवाड़ पर चिटकनी लगाकर मुत्तुकुमरन् अन्दर आया और उससे बैठने को कहा । माधवी ने पीने को पानी मांगा। वह उठकर सुराही से पानी ले आया। माधवी ने पानी पीकर तनिक आश्वस्त होने के बाद, सारी बातें सुनायीं।

सब कुछ सुनने के बाद मुत्तुकुमरन ने ठंडी आहें भरीं। थोड़ी देर तक उसकी समझ में नहीं आया कि उसकी बातों का क्या जवाब दे? वह एकाएक फूट-फूटकर रोने लगी। यह देखकर उसका कलेजा मुंह को आ गया। उसके पास जाकर, उसके रेशम जैसे काले बाल सहलाते हुए उसने उसे अपने बाहु-पाश में भर लिया। उसमें माधवी ने सुरक्षा का अनुभव किया । लम्बे मौन के बाद वह उससे बोला :

"समाज का हर क्षेत्र आज एक लम्बी गली में बदल गया है। उनमें से कुछेक गलियों पर चलनेवालों के लिए रोशनी ज्यादा और सुरक्षा कम हो गयी है। समाज की अंधेरी गलियों के मुकाबले रोशन गलियों में अधिक चोरी-डाके पड़ते हैं । सच- मुच, प्रकाश तले ही अँधेरे का वास हैं। कला-जगत् नाम की गली जो रात-दिन रोशनी से जगमगाती है, कीर्ति की रोशनी, सुविधाओं की रोशनी आदि वहाँ कई रोशनियाँ हैं। पर वहाँ भी सच्चे हृदयों और ऊँचे विचारों का तनिक भी प्रकाश नहीं। उस गली की अंधी रोशनी में, न जाने कितनों के शारीरिक और मानसिक सौंदर्य को चुपचाप और गुमराह कर बलि के लिए बाध्य किया जा रहा है।"

"कहते हैं कि मद्रास जाने पर मुझ जैसी गधी को गरदनी देकर बाहर निकाल