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ज्ञानयोग

मनुष्य हो जायँगे। जिस मार्ग से ब्रह्मलोक मे जाया जाता है, जहाँ से, पतन अथवा प्रत्यावर्तन की सम्भावना नहीं रहती उसे देवयान कहते है, और चन्द्रलोक के मार्ग को पितृयान कहते हैं।

अतएव वेदान्त-दर्शन के मत मे मनुष्य ही जगत् में सर्वश्रेष्ठ प्राणी है और यह पृथ्वी ही सर्वश्रेष्ठ स्थान है, कारण कि एक मात्र यहीं पर मुक्त होने की सम्भावना है। देवता आदि को भी मुक्त होने के लिये मनुष्य-जन्म ग्रहण करना पड़ेगा। इसी मानव-जन्म में ही मुक्ति की सब से अधिक सुविधा है।

अब हम इसके विरोधी मत की आलोचना करेंगे। बौद्ध लोग इस आत्मा का अस्तित्व एकदम अस्वीकार करते हैं। वे कहते हैं कि शरीर और मन के पीछे आत्मा नामक एक पदार्थ है, यह मानने की क्या आवश्यकता है? इस शरीर और मन का यन्त्र स्वतःसिद्ध है, यह कहने से क्या यथेष्ट व्याख्या नहीं हो जाती? और एक तीसरे पदार्थ की कल्पना से क्या लाभ? यह युक्ति खूब प्रबल है। जितनी दूर तक अनुसन्धान किया जाय, यही मालूम होता है कि यह शरीर और मन का यन्त्र स्वतःसिद्ध है, और हममे से अनेक इस तत्व को इसी भाव से देखते है। तब फिर शरीर और मन के अतिरिक्त अथच शरीर और मन के आश्रयभूमि स्वरूप आत्मा नामक एक पदार्थ के अस्तित्व की कल्पना की आवश्यकता क्या है? बस शरीर और मन कहना ही तो पर्याप्त है; नियत परिणामशील जड़स्रोत का नाम शरीर है और नियत परिणामशील चिन्तास्रोत का नाम मन है। तब जो एकत्व की प्रतीति हो रही है वह कैसे? बौद्ध कहते है कि यह एकत्व वास्तविक नहीं है। मान लो कि एक जलती मशाल को