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ज्ञानयोग

प्रकार के स्वर्ग हैं। वे वहाँ पर सूक्ष्मशरीर―देवशरीर प्राप्त करते हैं। वे देवता होकर वहाँ वास करते है और दीर्घ काल तक स्वर्ग के सुखों का उपभोग करते है। इस भोग का अन्त होने पर फिर उनका प्राचीन कर्म बलवान हो जाता है; अतः फिर उनका मर्त्यलोक में पतन हो जाता है। वे सब वायुलोक, मेघलोक आदि लोकों के भीतर होकर आते है और अन्त में वृष्टिधारा के साथ पृथ्वी पर गिर पड़ते है। वृष्टि के साथ गिर कर वे किसी शस्य का आश्रय ले कर रहते हैं। इसके बाद जब कोई व्यक्ति उस अन्न को खाता है तब उसकी औरस सन्तति में वह जीवात्मा फिर शरीर धारण करता है। जो लोग अत्यंत दुष्ट है उनकी मृत्यु होने पर वे भूत अथवा दानव हो जाते हैं और चन्द्रलोक और पृथ्वी के बीच किसी स्थान में वास करते है। उनमे से कोई कोई मनुष्यों के ऊपर बड़ा अत्याचार करते है और कोई कोई मनुष्यो से मैत्री भी कर लेते है। वे कुछ समय तक इसी स्थान में रहकर फिर पृथ्वी पर आकर पशु-जन्म लेते है। कुछ समय पशु-देह में रहकर वे फिर मनुष्यत्व लाभ करते है और फिर एक बार मुक्तिलाभ करने की उपयोगी अवस्था को प्राप्त करते है। तो हमने देखा कि जो लोग मुक्ति की निकटतम सीढ़ी पर पहुँच गये है, जिनके भीतर कम अपवित्रता रह गई है वे ही सूर्य की किरणों के सहारे ब्रह्मलोक में जाते है। जो मध्य वर्ग के लोग हैं, जो स्वर्ग जाने की इच्छा से सत्कर्म करते है वे ही सब चन्द्रलोक में जाकर वहाँ के स्वर्गों में वास करते है और देवशरीर को भी प्राप्त करते है, किन्तु उन्हे मुक्तिलाभ करने के लिये फिर मनुष्य देह धारण करना पड़ता है। और जो अत्यन्त दुष्ट है वे भूत, दानव आदि रूप में परिणत होते है, उसके बाद वे पशु होते है; और मुक्तिलाभ के लिये उन्हे फिर मनुष्यजन्म