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ज्ञानयोग

बनाता है वही एक मात्र अशुभ है। मनुष्य को दुर्बल और भयभीत बनाने वाला संसार में जो कुछ भी है वही पाप है और उसीसे बचना चाहिये। तुम्हें कौन भयभीत कर सकता है? यदि सैकड़ों सूर्य पृथ्वी पर गिर पड़ें, सैकड़ों चन्द्र चूर हो जायँ, एक के बाद एक ब्रह्माण्ड विनष्ट होते चले जायँ तो भी तुम्हारे लिये क्या है? शिला की भाँति अटल रहो; तुम अविनाशी हो। तुम आत्मा हो, तुम्हीं जगत् के ईश्वर हो। कहो "शिवोऽहं, शिवोऽहं; मैं पूर्ण सच्चिदानन्द हूँ।" और एक सिंह की भाँति पिंजड़ा तोड़ दो, अपनी शृंखालायें तोड़कर सदा के लिये मुक्त हो जाओ। तुम्हें किसका भय है, तुम्हें कौन रोक सकता है?—केवल अज्ञान और भ्रम; और कोई तुम्हें पकड़ नहीं सकता। तुम शुद्धस्वरूप हो, तुम नित्यानन्दमय हो।

यह मूर्खों का उपदेश है कि 'तुम पापी हो, अतएव एक कोने में बैठकर हाय हाय करते रहो।' यह उपदेश देना मूर्खता ही नहीं, दुष्टता भी है। तुम सभी ईश्वर हो। ईश्वर को न देखकर मनुष्य को देखते हो? अतएव यदि तुममें साहस है तो इसी विश्वास पर खड़े होकर उसी के अनुसार अपने जीवन को बनाओ। यदि कोई व्यक्ति तुम्हारा गला काटे तो उसको मना मत करना, क्योंकि तुम तो स्वयं ही अपना गला काट रहे हो। किसी गरीब का यदि कुछ उपकार करो तो उसके लिये तनिक भी अहङ्कार मत करना। कारण, वह तो तुम्हारे लिये उपासना मात्र है, उसमें अहंकार की कोई बात नहीं है। क्या तुम्हीं समस्त जगत् नहीं हो? ऐसी कौन सी वस्तु है और कहाँ है कि जो तुम नहीं हो? तुम जगत् की आत्मा हो। तुम्हीं सूर्य, चन्द्र, तारा हो। समस्त जगत् तुम्ही हो! किससे घृणा करोगे और किससे