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ज्ञानयोग

इससे आत्मा का कुछ बनता बिगड़ता नहीं। हिण्डोले की बात याद करो। वह लगातार घूमता रहता है। कई आदमी आते हैं और उसके एक एक पालने में बैठ जाते हैं। झूला घूमकर फिर पलट आता है। वे जब उतर गये तो दूसरा एक दल आ बैठा। क्षुद्रतम जन्तु से लेकर उच्चतम मानव तक प्रकृति का प्रत्येक रूप ही मानो ऐसे एक एक दल हैं, और प्रकृति एक बड़ा झूला है तथा प्रत्येक शरीर या रूप इस झूले के एक एक पालना जैसा है। नई आत्माओं का एक एक दल उन पर चढ़ रहा है और जब तक उनको पूर्णता प्राप्त नहीं होती तब तक अधिकाधिक उच्च पथ में उनकी गति है और अन्त में झूले से वे बाहर आती हैं किन्तु झूला निरन्तर चलता रहता है—हमेशा दूसरे लोगों को ग्रहण करने के लिए तैयार है। एवं जब तक शरीर इस चक्र के भीतर, इस झूले के भीतर अवस्थित है तब तक निश्चित रूप से तथा गणित के हिसाब से ये बातें बतला दी जा सकती हैं कि अब वह किस ओर जायगा। किन्तु आत्मा के बारे में ये सब बातें नहीं कही जासकती। अतएव प्रकृति के भूत तथा भविष्य निश्चित रूप से गणित की तरह ठीक ठीक बतलाना असम्भव नहीं है। अब हमने देखा है कि जड़ परमाणु इस समय जिस प्रकार एकीभूत (संहत) है, विशिष्ट समय पर वे फिर ठीक उसी रूप में संहत होते हैं। अनादि काल से ऐसे ही प्रवाह के रूप में जगत् की नित्यता चल रही है। किन्तु इससे तो आत्मा का अमरत्व प्रमाणित नहीं हुआ। हमने यह भी देखा है कि किसी भी शक्ति का नाश नहीं होता, किसी जड़ वस्तु को भी कभी शून्य में परिणत नहीं किया जा सकता। तब उनका क्या होता है? उनके विभिन्न परिणाम होते हैं, अन्त में जहाँ से उनकी उत्पत्ति हुई थी, वहीं वे पुनरावृत्त होते है। सरल रेखा में