१४. अमरत्व
( अमेरिका में दिया हुआ भाषण )
जीवात्मा के अमरत्व के सम्बन्ध में मनुष्य ने जितनी बार प्रश्न किया है, इस तत्त्व के रहस्य का उद्घाटन करने के लिये उसने जगत् में जितनी खोज की है, यह प्रश्न मनुष्य के हृदय को जितना प्रिय और उसके जितना निकट है, यह प्रश्न हमारे अस्तित्व के साथ जितना अच्छेद्य भाव से सम्बन्धित है उतना और कौनसा प्रश्न है? यह कवियों की कल्पना का विषय रहा है, साधु, महात्मा, ज्ञानी―सभी की चिन्ता का यह विषय रहा है, सिंहासन पर बैठे हुये राजाओं ने इस पर विचार किया है, पथ के भिखारियों ने भी इसका स्वप्न देखा है। श्रेष्ठतम मानवों ने इसका उत्तर पाया है, और अतिनिकृष्ट मनुष्यो ने भी इसकी आशा की है। इस विषय में लोगो का आग्रह अभी नष्ट नहीं हुआ है, और जब तक मानव प्रकृति विद्यमान है तब तक होगा भी नहीं। विभिन्न विचारक मस्तिष्को ने इसके विभिन्न उत्तर दिये है। दूसरी ओर इतिहास के प्रत्येक युग में हजारो व्यक्तियों ने इस प्रश्न को बिलकुल अनावश्यक कहकर छोड़ दिया है, फिर भी यह प्रश्न ज्यों का त्यों नवीन ही बना हुआ है। जीवन-संग्राम के शोरगुल में हम प्राय इस प्रश्न को भूल से जाते हैं, परन्तु जब अचानक कोई मर जाता है, एक ऐसा व्यक्ति जिससे हम प्रेम करते है, जो हमारे हृदय के अति निकट और अत्यन्त प्रिय है अचानक हमसे छीन लिया जाता है तब हमारे चारों का संघर्ष और शोरगुल क्षण भर