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माया

क्या है? इसका उत्तर यह है कि―पहले तो दुःख को दूर करने के लिये तुम्हे कर्म करना पड़ेगा; कारण, स्त्रयं सुखी होने का यही एक मात्र उपाय है। हममे से प्रत्येक अपने अपने जीवन में शीघ्र या देरी में इस बात की यथार्थता को समझ लेते है। तीक्ष्णबुद्धि लोग कुछ शीघ्र और मन्दबुद्धि लोग कुछ देर में इसे समझ सकते हैं! मन्दबुद्धि लोग उत्कट यन्त्रणा भोगने के बाद तथा तीक्ष्ण- बुद्धि लोग थोड़ी यन्त्रणा पाने के बाद ही इसे समझ जाते है। दूसरे, यद्यपि हम जानते है कि यह जगत् केवल सुखपूर्ण हो, दुःख न रहे―ऐसा समय कभी भी न आयेगा, तथापि हमे यही कार्य करना होगा। यदि दुःख बढ़ता जाता है तो भी हम उस समय अपना कार्य करेगे। ये दोनो शक्तियाँ ही जगत् को जीवित रखेगी; अन्त में एक दिन ऐसा आयेगा कि जब हम स्वप्न से जागेगे एवं इस मिट्टी के पुतले का बनाना बन्द कर देगे। सचमुच हम चिरकाल मिट्टी के पुतले बनाने में लगे है। हमे यह शिक्षा लेनी होगी; और यह शिक्षा प्राप्त करने में बहुत देर लगेगी।

वेदान्त कहता है―अनन्त ही सान्त हो गया है। जर्मनी में इसी भित्ति के ऊपर दर्शन-शास्त्र-रचना की चेष्टा की गई थी। इंग्लैण्ड में अब भी इस प्रकार की चेष्टा चल रही है? किन्तु इन सब दार्शनिको के मत का विश्लेषण करने पर यही सारांश निकलता है कि अनन्तस्वरूप (Hegel's Absolute Mind) अपने को जगत् में व्यक्त करने की चेष्टा कर रहा है। यदि यह बात सत्य मान ली जाय तो अनन्त कभी न कभी अपने को व्यक्त करने में समर्थ हो ही जायगा। अतएव निरपेक्षावस्था विकसितावस्था से नीची है; कारण,