रूपक के ढंग से कथा वर्णित है,--आदि मानव आदम अत्यन्त पवित्र स्वभाव के थे, अन्त मे उनके असत्कार्यों से उनकी पवित्रता नष्ट हुई। इस रूपक से यह प्रमाणित होता है कि इस ग्रन्थ के लेखक विश्वास करते थे कि आदिम मानव का (अथवा वे उसका अन्य किसी भी भाव से वर्णन क्यो न करे) या प्रकृत मानव का स्वरूप आदि से ही पूर्ण था। हमें जो तरह तरह की दुर्बलताये अथवा अपवित्रता दिखाई देती है, वह सब उसके ऊपर आरोपित आवरण या उपाधि मात्र है, एवं उसी धर्म का परवर्ती इतिहास यह बतलाता है कि उसके अनुयायी केवल उसी पूर्व अवस्था को पुनः प्राप्त करने की सम्भावना मे ही नहीं, वरन्
उसकी निश्चितता में भी विश्वास करते है। यही समस्त बाइबिल का--प्राचीन तथा नवीन टेस्टामेण्ट का--इतिहास है।
मुसलमानों के सम्बन्ध में भी ऐसा ही है। वे भी आदम तथा उसकी जन्मजात पवित्रता पर विश्वास करते है। और उनकी यह धारणा है कि हज़रत मुहम्मद के आगमन से उस लुप्त पवित्रता के पुनरुद्धार का उपाय प्राप्त हो चुका है।
बौद्धो के विषय में भी यही है। वे भी निर्वाण नामक अवस्था- विशेष पर विश्वास रखते है। यह अवस्था द्वैत जगत् से अतीत अवस्था है। वेदान्ती लोग जिसे ब्रह्म कहते है, यह निर्वाण अवस्था भी ठीक वहीं है। और बौद्ध धर्म के सम्पूर्ण उपदेश का यही धर्म है कि उस विनष्ट निर्वाण अवस्था को फिरसे प्राप्त करना होगा।
इस तरह देखा जाता है कि सभी धर्मो में यही एक तत्व पाया जाता है कि जो तुम्हारा नहीं है उसे तुम कभी नहीं पा सकते। इस