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१३. आत्मा का मुक्त स्वभाव

हम पहले जिस कठोपनिषद की आलोचना करते थे, वह छान्दोग्योपनिषद के, जिसकी हम आलोचना करेंगे, बहुत समय बाद रचा गया था। कठोपनिषद की भाषा अपेक्षाकृत आधुनिक है, उसकी चिन्तनशैली भी सबसे अधिक प्रणालीबद्ध है। प्राचीनतर उपनिषदों की भाषा कुछ अन्य प्रकार की थी। वह अति प्राचीन एवं बहुत कुछ वेद के संहिता-भाग की तरह थी। फिर उनमें अनेक बार अनेक अनावश्यक विषयों में से घूम फिर कर तब कहीं उनका सार मत प्राप्त होता है। इस प्राचीन उपनिषद में कर्मकाण्डात्मक वेदांश का काफी प्रभाव है। इसीलिए इसका आधे से अधिक भाग अब भी कर्मकाण्डात्मक है। किन्तु अति प्राचीन उपनिषदों के अध्ययन से एक महान लाभ होता है। वह लाभ यह है कि उनके अध्ययन से आध्यात्मिक भावों का ऐतिहासिक विकास जाना जा सकता है। अपेक्षाकृत आधुनिक उपनिषदों में ये आध्यात्मिक तत्व सब एकत्र संग्रहीत एवं सज्जित पाये जाते हैं। उदाहरण रूप भगवद्गीता को ही ले लीजिये। श्रीमद्‌भगवद्गीता को अन्तिम उपनिषद कहा जासकता है, क्योंकि उसमें कर्मकाण्ड का लेशमात्र भी नहीं है। गीता का प्रत्येक श्लोक किसी न किसी उपनिषद से संग्रहीत है, मानो अनेक पुष्पों के संचयन से एक सुन्दर गुच्छ निर्मित हुआ हो, किन्तु उनमें इन सब तत्वों का क्रमविकास देखने में नहीं आता। अनेक लोगों के मतानुसार इन आध्यात्मिक तत्वों के क्रम-विकास को जानने की सुविधा ही वेद के अध्य-