कही किसी प्रकार का आनंद देखोगे, यहाॅ तक कि चोरों को चोरी मे जो आनन्द मिलता है, वह भी वस्तुतः वही पूर्णानन्द है; अन्तर यही है कि वह कुछ बाह्य वस्तुओं के संपर्क से मलीन हो गया है। किन्तु उसकी प्राप्ति के लिये पहले हमे समस्त ऐहिक सुखभोग का त्याग करना होगा। उसका त्याग करने पर ही प्रकृत आनन्द की साक्षात् उपलब्धि होगी। पहले अज्ञान, मिथ्या का त्याग करना होगा, तभी सत्य का प्रकाश होगा। जब हम सत्य को दृढ़तापूर्वक पकड़ सकेगे, तब पहले हमने जो कुछ भी त्याग किया था वही फिर एक दूसरा रूप धारण करेगा, एक नवीन आकार में प्रतिभात होगा, उस समय समस्त ब्रह्माण्ड ही ब्रह्ममय हो जायगा, उस समय सभी कुछ उन्नत भाव को धारण करेगा, उस समय हम सभी पदार्थों को नवीन आलोक मे देखेंगे। किन्तु पहले हमे उन्ही सब का त्याग करना होगा; बाद मे सत्य का अन्तत एक बिन्दु आभास पाने पर फिर हम उन सभी को ग्रहण करलेगे, किन्तु अन्य रूप मे--ब्रह्माकार मे--परिणत रूप मे। अतएव हमे सुख-दुःख सभी का त्याग करना होगा। ये सब उस प्रकृत वस्तु का, उसे चाहे सुख कहो या दुःख, विभिन्न क्रम मात्र है। 'सभी वेद जिसकी घोषणा करते हैं, सभी प्रकार की तपस्याये जिसकी प्राप्ति के लिये की जाती है, जिसे पाने की इच्छा से लोग ब्रह्मचर्य का अनुष्टान करते है, हम सक्षेप मे उसी के सम्बन्ध मे तुम्हे बतायॅगे, वह ॐ है। 'वेद मे इस ॐ कार की अतिशय महिमा और पवित्रता वर्णित है।
इस समय यम नचिकेता के प्रश्न का--मृत्यु के बाद मनुष्य की क्या दशा होती है--उत्तर देते है। "सदा चैतन्यवान आत्मा