समय समय पर इन सभो का अनुष्ठान होता था और वे पवित्र आचार माने जाने लगे। उसके बाद कुछ व्यक्तियो ने इस यज्ञ-कार्य के निर्वाह का भार अपने ऊपर ले लिया। यही लोग पुरोहित हुए। ये यज्ञ के सम्बन्ध मे गम्भीर गवेषणा करने लगे। यज्ञ ही इन लोगो का सर्वस्त्र हो-गया। उन लोगों की यह धारणा उस समय बद्धमूल हुई कि देवता लोग यज्ञ के गंध का आघ्राण करने के लिये आते है। यज्ञ की शक्ति से संसार मे सब कुछ हो सकता है। यदि निर्दिष्ट सख्या में आहुतियाॅ दी जायॅ, कुछ विशेष विशेष स्तोत्रो का पाठ हो, विशेष आकार वाली कुछ वेदियो का निर्माण हो, तो देवता सब कुछ कर सकते हैं, इत्यादि मतवादो की सृष्टि हुई। नचिकेता इसी लिये दूसरे वर द्वारा जिज्ञासा करता है कि किस तरह के यज्ञ से स्वर्गप्राप्ति हो सकती है। उसके बाद नचिकता ने तीसरे वर की प्रार्थना की, और यही से प्रकृत उपनिषद का आरम्भ है। नचिकेता बोला--"कोई कोई कहते है, मृत्यु के बाद आत्मा रहती है, कोई कोई कहते हैं, आत्मा मृत्यु के बाद नहीं रहती। आप मुझे इस विषय का यथार्थ तत्व समझा दे।"
यम भयभीत होगये। उन्होने परम आनन्द के साथ नचिकेता के प्रयमोक्त दोनो वरो को पूर्ण किया था। इस समय वे बोले, --"प्राचीन काल में देवतागण इस विषय मे सदिग्ध थे। यह सुक्ष्म धर्म सुविज्ञेय नही है। हे नचिकेता! तुम कोई दूसरा वर माॅगो। मुझसे इस विषय में और अधिक अनुरोध न करो, मुझे छोड दो।
नचिकेता दृढप्रतिज्ञ था वह बोला--"हे मृत्यो! सुना। है, देवतालोगो ने भी इस विषय मे सदेह किया था, और इसे समझना
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