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अपरोक्षानुभूति

उन्होने एक समय एक यज्ञ किया। उस यज्ञ में सर्वस्वदान करने का नियम था। इस यज्ञकर्ता व्यक्ति का बाहर और भीतर समान नहीं था। वह यज्ञ करके खूब मान और यश पाने की इच्छा रखता था। किन्तु यज्ञ में वह ऐसी सभी वस्तुओ का दान करता था, जो व्यवहार में पूर्णतः अनुपयुक्त थी। उसने कितनी ही जराजीर्ण, अर्धमृत, बन्ध्या, एक आँखवाली और लँगड़ी गाये ब्राह्मणो को दान में दी। उसका एक छोटा पुत्र था, जिसका नाम था नचिकेता। उसने देखा, उसके पिता ठीक ठीक अपना व्रत-पालन नहीं कर रहे है, अपितु वे व्रत का भग कर रहे है, अतएव वह निश्चय नहीं कर पाया कि वह उनसे क्या कहे। भारतवर्ष में माता-पिता प्रत्यक्ष जीवन्त देवता माने जाते है। उनके सामने सन्तान कुछ कहने या करने का साहस नहीं करता है, केवल चुप होकर वे खड़े रहते है। अतएव उस बालक ने पिता के सम्मुख साक्षात् विरोध करने में असमर्थ हो, उनसे केवल यही पूछा―"पिताजी, आप मुझे किस को देगे? आपने तो यज्ञ में सर्वस्त्रदान का सकल्प किया है।" यह सुनकर पिता विरक्त हुए और बोले―"हे वत्स, तू क्या कह रहा है? भला पिता अपने पुत्र का दान करेगा, यह कैसी बात है? "पर बालक ने दूसरी बार. तीसरी बार बारम्बार पिता से यही प्रश्न किया, तब पिता क्रुद्ध होकर बोले―"तुझे मैं यम को दे दूँगा।" उसके बाद आख्यायिका ऐसी है कि वह बालक यम के घर गया। आदिमानव मृत होकर यमदेवता होते हैं, वे स्वर्ग जाकर समुदय पितृगण के शासनकर्ता होते हैं। अच्छे व्यक्ति मृत्यु प्राप्त कर यम के निकट अनेक दिनो तक रहते है। ये यम एक अत्यन्त शुद्धस्वभाव साधुपुरुष कहकर वर्णित है। वह बालक नचिकेता यमलोक को