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ज्ञानयोग

तेजो यत्ते रूपं कल्याणतमं तत्ते पश्यामि।
योऽसावसौ पुरुषः सोऽहमस्मि॥

(ईश॰ उप॰ १५-१६)

"हे सूर्य, हिरण्मय (स्वर्ण के) पात्र द्वारा तुमने सत्य का मुख ढँक रक्खा है। सत्य धर्म वाला मैं जिससे उसे देख पाऊं, इसके लिये उसको हटा दो। ... मैं तुम्हारा परम रमणीय रूप देखता हूँ―तुम्हारे अन्दर जो यह पुरुष है वह मैं ही हूँ।"




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