अशान्ति नहीं। है केवल पूर्ण एकत्व―पूर्ण आनन्द। तब वे किसके लिये शोक करेंगे? वास्तव में उस केन्द्र में, उस परम सत्य में मृत्यु नहीं है, दुःख नहीं है, किसी के लिये शोक करना नहीं है, किसी के लिये दुःख करना नहीं है।
स पर्यगाच्छुक्रमकायमत्रणमस्नाविरं शुद्धमपापविद्धम्।
कविर्मनीषी परिभू: स्वयंभूर्याथातथ्यतोऽर्थान्
व्यद्घाच्छाशतीभ्यः समाम्य:॥
( ईशोपनिषद्, ८ वॉ श्लोक )
"वह चारों ओर से घेरे हुये है, वह उज्ज्वल है, देहशून्य है, व्रणशून्य है, स्नायुशृन्य है, वह पवित्र और निष्पाप है, वह कवि है, मन का नियामक है, सब से श्रेष्ठ और स्वयम्भू है; वह सवेदा ही यथायोग्य सभी के काम्य वस्तुओं का विधान करता है।" जो इस अविद्यामय जगत् की उपासना करता है वह अन्धकार में प्रवेश करता है। जो इस जगत् को ब्रह्म के समान सत्य समझकर उसकी उपासना करते है वे अन्धकार में भ्रमण करते हैं, किन्तु जो आजीवन इस संसार की उपासना करते है, उससे ऊपर और कुछ भी लाभ नहीं कर पाते, वे और भी घने अन्धकार में प्रवेश करते है। किन्तु जिन्होंने इस परम सुन्दर प्रकृति का रहस्य जान लिया है, जो प्रकृति की सहायता से दवी प्रकृति का चिन्तन करते है वे मृत्यु का अतिक्रमण करते हैं एंव दैवी प्रकृति की सहायता से अमरत्व का भोग करते है।
हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहित मुखम्।
तत्त्व पृपन्नपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये॥