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सभी वस्तुओं में ब्रह्मदर्शन

वासनाओ का त्याग कर देगे तब क्या होगा? दीवार में कोई वासना नहीं है, उसे कोई दुःख नहीं भोगना होता। ठीक है, परन्तु वह कभी उन्नति भी नहीं करती। इस कुर्सी में कोई वासना नहीं है, कोई कष्ट भी उसे नहीं है, परन्तु यह जो कुर्सी है, कुर्सी ही रहेगी। सुखभोगो के भीतर भी एक महानता है और दुःखभोगों के भीतर भी। यदि साहस करके कहा जाय तो यह भी कह सकते है कि दुःख की भी उपकारिता है। हम सभी जानते है कि दुःख से कितनी बड़ी शिक्षा मिलती है। हमने जीवन में ऐसे सैकड़ों कार्य किये है जिनके विषय में बाद में लगता है कि वे न किये जाते तो अच्छा होता, किन्तु यह होने पर भी ये सब कार्य हमारे लिये महान् शिक्षक का कार्य करते है। मैं अपने सम्बन्ध में कह सकता हूँ कि मैने कुछ अच्छे कार्य किये है यह सोच कर भी मैं आनन्दित हूँ और अनेक बुरे कार्य किये हैं यह सोच कर भी आनन्दित हूँ। मैने कुछ सत्कार्य किया है इसलिये भी सुखी हूँ और अनेक भ्रमो में भी मैं पड़ा हूँ इसलिये भी सुखी हूँ, कारण उनमे से प्रत्येक ने ही मुझे कुछ न कुछ उच्च शिक्षा दी है।

मैं इस समय जो कुछ भी हूँ वह अपने पूर्व कर्मों और विचारो का फलस्वरूप हूँ। प्रत्येक कार्य और चिन्ता का एक न एक फल अवश्य ही है और मोटे तौर से मैने यही उन्नति की है कि मैं बड़े सुख से समय काट रहा हूँ। तब भी इस समय समस्या कठिन आ पड़ी है। हम सभी जानते है कि वासना बड़ी बुरी चीज़ है, किन्तु वासना- त्याग का अर्थ क्या है? शरीर-रक्षा किस प्रकार होगी? इसका उत्तर भी पहले की भाँति आपातत यही मिलेगा कि आत्म-हत्या करो। वासना का सहार करो और उसके साथ ही वासनायुक्त