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ज्ञानयोग


का भेद चला जायगा। हम चाहे इच्छा करे या न करे, हम जिस एकत्व की ओर अग्रसर होकर चल रहे है वह एक दिन प्रकाशित होगा ही। वास्तव मे हम सब के बीच भ्रातृसम्बन्ध स्वाभाविक ही है--किन्तु हम सब इस समय पृथक् हो गये है। ऐसा समय अवश्य आयेगा जब ये सब विभिन्न भाव एकत्र मिल जायेगे। प्रत्येक व्यक्ति जिस प्रकार वैज्ञानिक विषय में उसी प्रकार आध्यात्मिक विषय में भी क्रियात्मक हो जायगा। उस समय वही एकत्व, वही सम्मिलन जगत् मे व्यक्त होगा। तब सभी जगत् जीवन्मुक्त हो जायगा। अपनी ईर्ष्या, घृणा, मेल और विरोध मे से होकर हम उसी एक दिशा मे चल रहे है। एक वेगवती नदी समुद्र की ओर जा रही है। छोटे छोटे कागज के टुकड़े तिनके आदि इसमे बह रहे है, वे इधर उधर जाने की चेष्टा कर सकते है, किन्तु अन्त मे उन्हे अवश्य ही समुद्र मे जाना पड़ेगा। इसी प्रकार तुम और मैं तो क्या, समस्त प्रकृति ही क्षुद्र क्षुद्र कागज के टुकड़ो की भाँति उस अनन्त पूर्णता के सागर ईश्वर की ओर अग्रसर हो रही है--हम भी इधर उधर जाने की चेष्टा कर सकते है, परन्तु अन्त मे हम भी उस जीवन और आनन्द के अनन्त समुद्र मे पहुॅचेगे।


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