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माया

ज्ञान होता है। हम लोग जो थोड़ासा सुख भोग रहे है, अन्य कहीं पर उससे उतना ही दुःख उत्पन्न हो रहा है। सभी वस्तुओ की यही अवस्था है। युवकगण शायद इस बात को न समझ पायें। किन्तु जिन्होने संसार में बहुत दिन बिताये है, जिन्होने बहुतसी यंत्रणाये भोगी है वे इस बात को समझ सकेगे। यही माया है। दिन रात ये समस्त व्यापार संघटित हो रहे है, किन्तु इनकी ठीक प्रकार से मीमांसा करना असम्भव है। इस प्रकार यह सब जो हो रहा है उसका कारण क्या है? इस विषय में वास्तव में न्यायसंगत कोई प्रश्न ही नहीं हो सकता; अतएव इस प्रश्न का उत्तर भी असम्भव है। इसका कारण जाना नहीं जा सकता। उत्तर देने से पहले इसका तात्पर्यबोध ही नहीं होगा, यह क्या है यह हम नहीं जान सकते। हम इसे एक क्षण को भी स्थिर नहीं रख सकते—प्रति क्षण यह हमारे हाथ से निकलता रहता है। हम सब अन्धे यंत्रो के समान परिचालित हो रहे हैं। यद्यपि हमने कभी कभी निःस्वार्थ भाव से जो कार्य किया है, परोपकार की जो चेष्टा की है उसे स्मरण करके कह सकते है, 'क्यो, यह कार्य तो हमने समझ बूझ कर, सोच विचार कर किया था।' किन्तु वास्तव में हम उन कार्यों को किये बिना रह ही नहीं सकते थे, इसी कारण उन्हे किया था। मुझे इसी स्थान पर खड़े हो कर आप लोगो को भाषण द्वारा उपदेश देना पड़ रहा है और आप लोगो को बैठ कर इसे सुनना पड़ रहा है, यह भी हम लोग बिना किये रह नहीं सकते इसीलिये कर रहे है। आप घर लौट जायेंगे, शायद कुछ लोग थोड़ी बहुत शिक्षा भी प्राप्त करेगे, दूसरे शायद मन में कहेगे, यह आढमी व्यर्थ ही बक रहा है। मैं भी घर चला जाऊँगा और सोचूँगा कि मैने आज भाषण दिया। यही माया है।