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ज्ञानयोग

को पडोसियो पर लादना चाहता है । और यदि यह न बन सके. तो ईश्वर को इसके लिये उत्तरदायी बनाने की चेष्टा करता है और यदि इसमे भी सफल न हुआ तो भाग्य नामक एक भूत की कल्पना करता है और उसी को इसके लिये उत्तरदायी करके निश्चिन्त रहता है। परन्तु प्रश्न यह है कि 'भाग्य' नाम की यह वस्तु है क्या और रहती कहाँ है ? हम तो जो कुछ बोते है उसीको पाते है।

हमने स्वय ही अपने अपने भाग्यो की सृष्टि की है। यद्यपि हमारा भाग खोटा हो तब भी हम किसी को उत्तरदायी नहीं बना सकते और यदि हमारे भाग्य अच्छे हो तो भी किसी की प्रशंसाहकरने की आवश्यकता नहीं है। वायु सर्वदा बह रही है। जिन सब जहाजों के पाल उठे रहते है उन्हीं का वायु साथ देती है और वे ही उसके सहारे आगे बढ़ते है। किन्तु जिनके पाल लगाये नही गये उन पर वायु का कोई असर नहीं होता। किन्तु यह क्या वायु का दोष है ? हममे कोई सुखी है तो कोई दुःखी । क्या यह भी उनहकरुणामय पिता के कारण है जिनकी कृपा-रूपी वायु दिनरात बहती रहती है, जिनकी दया का अन्त नहीं है ? हम स्वयं ही अपने भाग्यों के निर्माता है। उनका सूर्य सभों के लिये उगता है चाहे वे दुर्बल हो या बलवान । साधु, पापी सभी के लिये उनकी वायु बह रही है । वे सभो के प्रभु है, पिता है, वे दयामय तथा समदर्शी है । क्या तुम लोगो की यह धारणा है कि हम छोटी छोटी चीजों को जिस दृष्टि से देखते है, वे भी उसी दृष्टि से देखते है ? भगवान के सवध मे हमारी यह कितनी क्षुद्र धारणा है। कुत्ते के पिल्लो की -