पृष्ठ:Vivekananda - Jnana Yoga, Hindi.djvu/१९८

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१९४
ज्ञानयोग

तुम गिर गये। जब स्मृति यह सब तुम्हारे मन में ला देगी केवल तभी तुम वीर-से खड़े हो सकोगे तथा संसार के कटाक्ष तुम हँसकर उड़ा दे सकोगे। तभी वीर की तरह खड़े होकर तुम कह सकोगे, "मृत्यो, तुझसे मै जरा भी नहीं डरता, तुम व्यर्थ क्यों मुझे डराने की चेष्टा कर रहे हो?" जब तुम जान जाओगे कि तुम पर मृत्यु का कोई प्रभाव नहीं है, तभी तुम मृत्यु पर विजय प्राप्त कर सकोगे एवं धीरे धीरे हम सभी इस मृत्युजयी अवस्था में पहुचेगे।

आत्मा का पुनर्जन्म होता है इसका कौन सा युक्तियुक्त प्रमाण है? अब तक हम शंका का समाधान कर रहे थे। हमने देखा कि पुन- र्जन्मवाद अप्रमाणित करने के लिये जो युक्तियाँ उठाई जाती है वे खोखली है। अब पुनर्जन्मवाद के पक्ष में जितनी युक्तियाँ हैं उनकी हम आलोचना करेगे। पुनर्जन्मवाद के बिना ज्ञान असंभव है। मानो मैंने रास्ते पर एक कुचा देखा। मैं कैसे जान पाया कि वह कुत्ता ही है? जैसे ही मेरे मन पर उसकी छाप पड़ी वैसे ही उसे मैं अपने मन के पूर्वसंस्कारो के साथ मिलाने लगा। मैने देखा कि वहाँ मेरे समस्त पूर्वसंस्कार स्तर स्तर में अवस्थित हैं। ज्होही कोई नया विषय आया त्योही मैंने प्राचीन सस्कारो से उसकी तुलना की। जैसे ही मैने अनु- भव किया कि उसी की भाँति और भी कई संस्कार वहाँ विद्यमान है, वैसे ही उसकी तुलना करने लगा―तभी मैं तृप्त हुआ। मैंने तब उसे कुत्ते के नाम से जान पाया, क्योकि पहले के कई संस्कारो के साथ वह मिल गया। जब हम उस जैसे संस्कार को अपने भीतर नहीं देख पाते है तभी हममे असतोप पैदा होता है। इसीको अज्ञान कहते है। और सन्तोष मिल जाने से ही ज्ञान कहलाता है। जब एक सेव