रही है। एक तरंग उठती है, एक गिरती है, फिर उठती है, फिर गिरती है। प्रत्येक तरंग के साथ एक अवनति है, प्रत्येक अवनति के साथ एक तरंग है। समस्त ब्रह्माण्ड में समप्रणाली होने के कारण एक ही नियम चलेगा। अतएव हम देखते हैं कि समस्त ब्रह्माण्ड एक समय अपने कारण में लय होने को बाध्य है; सूर्य, चन्द्र, ग्रह, तारे, पृथ्वी, मन, शरीर, जो कुछ भी इस ब्रह्माण्ड में हैं, सभी पदार्थ अपने सूक्ष्म कारण मे लीन अथवा तिरोभूत होगे, अपाततः विनष्ट होंगे। वास्तव मे वे सब अपने कारण मे सूक्ष्म रूप मे रहेगे। वे फिर उससे बाहर निकलेगे और पृथिवी, चन्द्र, सूर्य, यहाॅ तक कि समस्त जगत् की सृष्टि होगी।
इस उत्थान और पतन के सम्बन्ध में और भी एक विषय जानने का है। वृक्ष से बीज होता है। किन्तु वह उसी समय फिर वृक्ष नहीं हो जाता। उसको कुछ विश्राम अथवा अति सूक्ष्म अव्यक्त कार्य के समय की आवश्यकता होती है। बीज को कुछ दिन तक मिट्टी के नीचे रह कर कार्य करना पड़ता है। उसे अपने आप को खण्ड खण्ड कर देना होता है तथा एक प्रकार से अपनी अवनति करनी होती है और इसी अवनति से उसकी फिर उन्नति होती है। अतएव इस समस्त ब्रह्माण्ड को ही कुछ समय अदृश्य अव्यक्त भाव से सूक्ष्म रूप में कार्य करना होता है, जिसे प्रलय अथवा सृष्टि के पूर्व की अवस्था कहते हैं, उसके बाद फिर सृष्टि होती है। जगत के इस प्रवाह के एक बार प्रकाशित होने को--अर्थात् सूक्ष्म रूप में परिणति, कुछ दिन तक उसी अवस्था में स्थिति, फिर आविर्भाव--इसी को कल्प कहते हैं। समस्त ब्रह्माण्ड इसी प्रकार