जो सब वस्तुओं की अन्तरात्मा स्वरूप है, जो सब का सार और सभी वस्तुओं का सत्यस्वरूप है, जो नित्यमुक्त, नित्यानंद और नित्यसत्ता स्वरूप है। बाह्य विज्ञान के द्वारा भी हम उसी एक तत्त्व पर पहुँचते है। यह समस्त जगत्प्रपञ्च उसी एक का विकास है—वह जगत् में जो कुछ भी है उस सब का समष्टि स्वरूप है। और समग्र मानवजाति मुक्ति की ओर अग्रसर हो रही है, बन्धन की ओर वह कभी जा ही नहीं सकती। मनुष्य नीतिपरायण क्यों हो? क्योंकि नीति ही मुक्ति का और दुर्नीति बन्धन का मार्ग है।
अद्वैतवाद का एक और विशेषत्व यह है कि अद्वैत सिद्धान्त अपने आरम्भ काल से ही अन्य धर्मों या मतों को तोड़ फोड़ कर फेंक देने की चेष्टा नहीं करता। अद्वैतवाद का एक और महत्व यह है कि यह प्रचार करना महान् साहस का कार्य है कि―
न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्मसंगिनाम्।
जोषयेत् सर्वकर्माणि विद्वान् युक्तः समाचरन्॥
गीता, ३ । २६
"ज्ञानी लोगों को अज्ञ अतएव कर्म में आसक्त व्यक्तियों में बुद्धिभेद उत्पन्न नहीं करना चाहिये, विद्वान व्यक्ति को स्वयं युक्त रह कर उन लोगों को सब प्रकार के कर्मों में नियुक्त करना चाहिये।"
अद्वैतवाद यही कहता है―किसी की बुद्धि को विचलित मत करो, किन्तु सभी को उच्च से उच्चतर मार्ग पर जाने में सहायता करो। अद्वैतवाद जिस ईश्वर का प्रचार करता है वह समस्त जगत