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माया और ईश्वरधारणा का क्रमविकास

वाला। मान लो कि समाज में दोष है और एक दल उठकर गाली गलौज करने लगा। बहुत दिन तक ये लोग केवल कट्टरपन्थी रहे। सभी देशों और समाजों में ये लोग देखे जाते हैं, और स्त्रियाँ तो अधिकांश इस चीत्कार में योग दिया करती है, कारण वे स्वभाव से भावुक होती है। जो व्यक्ति खड़े होकर किसी विषय के विरुद्ध लेक्चरबाजी करेगा उसके दल की वृद्धि होगी ही। तोड़ना सहज होता है, पागल आदमी जो चाहे तोड़ फोड़ सकता है, किन्तु किसी वस्तु का बनाना उसके लिये कठिन है।

सभी देशो में इस प्रकार के गन्दे विषयों के प्रतिवादी किसी न किसी रूप में पाये जाते है, और वे समझते हैं कि केवल गाली- गलौज से और दो को प्रकाश में लाकर ही वे लोगो का उपकार कर रहे है। उनको देखने से ऐसा लगता है कि वे कुछ उपकार कर रहे है, किन्तु वास्तव में वे अनिष्ट ही अधिक करते हैं। एक दिन में तो कोई काम नहीं होता। समाज एक ही दिन में तो बन नहीं गया, और परिवर्तन का अर्थ है, कारणो को दूर करना। मान लो कि बहुत से दोष है, किन्तु केवल गालीगलौज से तो कुछ होगा नही; हमें उनकी जड़ तक जाना पड़ेगा। पहले तो दोष का कारण क्या है यह जानना होगा, फिर उसे दूर करने से दोष स्वतः ही दूर हो जायगा। चिल्लाने से लाभ होने के स्थान पर हानि की ही अधिक सम्भावना है।

किन्तु पूर्ववर्णित दूसरे दल के हृदय में सहानुभूति थी। वे समझ गये थे कि दोषो को दूर करने के लिये उनके कारणों को देखना