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ज्ञानयोग

हो गये हैं वे ही जगत् में सर्वश्रेष्ठ कर्मी हो गये हैं। मनुष्य तभी वास्तव मे प्रेम करता है जब वह देख पाता है कि उसके प्रेम का पात्र कोई क्षुद्र मर्त्य जीव नही है। मनुष्य तभी वास्तविक प्रेम कर सकता है जब वह देख पाता है कि उसके प्रेम का पात्र एक मिट्टी का ढेला नहीं किन्तु स्वयं भगवान् है। स्त्री स्वामी से और अधिक प्रेम करेगी यदि वह समझेगी कि स्वामी साक्षात् ब्रह्मस्वरूप हैं। स्वामी भी स्त्री से अधिक प्रेम करेगा यदि वह जानेगा कि स्त्री स्वयं ब्रह्मस्वरूप है। वे मातायें भी सन्तान से अधिक स्नेह करेंगी जो सन्तान को ब्रह्म स्वरूप देखेगी। वे ही लोग अपने महान् शत्रुओं से भी प्रेमभाव रक्खेंगे जो जानेंगे कि ये शत्रु साक्षात् ब्रह्मस्वरूप है। वे ही लोग साधु व्यक्तियों से प्रेम करेंगे जो समझेंगे कि साधु व्यक्ति साक्षात्ब्र ह्मस्वरूप हैं। वे ही लोग अत्यन्त असाधु व्यक्तियों से भी प्रेम करेंगे जो यह जान लेंगे कि इन महा दुष्टों के भी पीछे वही प्रभु विद्यमान है। जिनका क्षुद्र अहंकार एकदम मर चुका है और उसके स्थान पर ईश्वर ने अधिकार जमा लिया है वे ही लोग जगत् को इशारे पर चला सकते हैं। उनके लिये समस्त जगत् दूसरा ही रूप धारण कर लेता है। दुःखकर अथवा क्लेशकर जो कुछ भी है वह सब उनकी दृष्टि में चला जाता है; सभी प्रकार का गोलमाल और द्वन्द्व मिट जाता है। उनके लिये जगत् उस समय कारागार स्वरूप न रह कर (जहाँ हम प्रति दिन एक टुकड़ा रोटी के लिये झगड़ा, मारपीट करते हैं) हमारे क्रीड़ाक्षेत्र के रूप में बदल जायगा। उस समय जगत् बड़े ही सुन्दर रूप में परिणत हो जायगा। इसी प्रकार के व्यक्ति को यह कहने का अधिकार है कि-'यह जगत् कितना सुन्दर है!' उन्हीं को यह कहने का भी अधिकार है कि सभी मंगल स्वरूप है। इस प्रकार की