यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
तुलसी चौरा :: ८७
 


भी तुमने बचन को निभाया है।'

'ऐसा क्या कर दिया है, मैंने! जो सही था वही किया।'

'नहीं यार! यह सचमुच बहुत महत्वपूर्ण कार्य था। इस अग्र- हारम के तीनों मोहल्लों में मैं किसी का भी इज्जत नहीं करता। पर तुम्हें! तुम्हें इज्जत दिए बिना भी नहीं रह पाता।'

अपने अजीज, मित्र के मुँह से अपनी प्रशंसा सुनकर शर्मा भी सकुचा गए। बोले, 'हम लोग परस्पर एक दूसरे की प्रशंसा करें, कुछ अच्छा नहीं लगता।'

'झूठ कह रहा हूँ, क्या?'

'यदि एक ऐसा सच, जिसके कहने से सामने वाले का सिर चढ़ जाए, उसे भीतर ही रखना बेहतर और श्रेयस्कर है।'

'देखो यार, जो सही और ईमानदार व्यक्ति होता है, उसकी तारीफ तुरन्त कर देनी चाहिए। ऐसे लोगों की तारीफ में कुछ कड़े शब्द भी प्रयोग किए जा सकते हैं न।'

'तभी न, ऐसे लोग पैदा होते जा रहे हैं, जो प्रशंसा की अपेक्षा में अच्छे कार्य करते हैं, या प्रशंसा का तामझाम जुटाते हैं। फूल में महक हो सकती है पर उसे सूँघने वाले उस महक को समझ सकें, जरूरी है। जरूरी नहीं कि वह फूल अपनी महक को जान सके। शास्त्रों में यश की खोज में भागने वाले व्यक्ति को, शराब की खोज में भटकने वाले शराब के समान बताया गया है। यशेच्छा भी एक तरह का व्यसन ही है।'

इरैमुडिमणि ने बात की दिशा बदल दी।

'बेटे के साथ जो फेंच युवती आयी है, वह बहुत अच्छी लड़की लगती है। तमिल बढ़िया बोलती है। तुम यहाँ जब तक बैठे रहे, तुम्हारे सामने बैठी ही नहीं। बहुत इज्जत देती है यार तुम्हें।'

'यही नहीं, बहुत बुद्धिमान भी है। काफी कुछ पड़ रखा है।'

'एक फ्रेंच लड़की इतनी अच्छी तमिल बोले, यह सचमुच आश्चर्य